(2) गद्य आकलन : निम्नलिखित गद्यांश पढ़कर ऐसे चार प्रश्न तैयार कीजिए, जिनके उत्तर गद्यांश में एक-एक वाक्य में हो। क्रोध के प्रेरक को दो प्रकार के दुख हो सकते हैं, अपना दुख और पराया दुख। जिस क्रोध के त्याग का उपदेश दिया जाता है वह पहले प्रकार के दुख से उत्पन्न क्रोध है। दूसरे के दुख पर उत्पन्न क्रोध बुराई की हद के बाहर समझा जाता है। क्रोधोत्तेजक दुख जितना ही अपने संपर्क से दूर होगा, उतना ही लोक में क्रोध का स्वरूप सुंदर और मनोहर दिखाई देगा। दुख से आगे बढ़ने पर भी कुछ दूर तक क्रोध का कारण थोड़ा बहुत अपना ही दुख कहा जा सकता है, जैसे, अपने या आत्मीय परिजन का दुख, इष्ट-मित्र का दुख। उसके आगे भी जहाँ तक दुख की भावना के साथ कुछ ऐसी विशेषता लगी रहेगी कि जिसे कष्ट पहुँचाया जा रहा है वह हमारे ग्राम, पुर, देश का रहने वाला है, वहाँ तक हमारे क्रोध से सौंदर्य की पूर्णता में कुछ, कसर रहेगी। जहाँ उक्त भावना निर्विशेष रहेगी वहीं सच्ची परदुखकातरता मानी जाएगी।
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कीजिए, जिनके उत्तर गद्यांश में एक-एक वाक्य में हो। क्रोध के प्रेरक को दो प्रकार के दुख हो सकते हैं, अपना दुख और पराया दुख। जिस क्रोध के त्याग का उपदेश दिया जाता है वह पहले प्रकार के दुख से उत्पन्न क्रोध है। दूसरे के दुख पर उत्पन्न क्रोध बुराई की हद के बाहर समझा जाता है। क्रोधोत्तेजक दुख जितना ही अपने संपर्क से दूर होगा, उतना ही लोक में क्रोध का स्वरूप सुंदर और मनोहर दिखाई देगा। दुख से आगे बढ़ने पर भी कुछ दूर तक क्रोध का कारण थोड़ा बहुत अपना ही दुख कहा जा सकता है, जैसे, अपने या आत्मीय परिजन का दुख, इष्ट-मित्र का दुख। उसकेकीजिए, जिनके उत्तर गद्यांश में एक-एक वाक्य में हो। क्रोध के प्रेरक को दो प्रकार के दुख हो सकते हैं, अपना दुख और पराया दुख। जिस क्रोध के त्याग का उपदेश दिया जाता है वह पहले प्रकार के दुख से उत्पन्न क्रोध है। दूसरे के दुख पर उत्पन्न क्रोध बुराई की हद के बाहर समझा जाता है। क्रोधोत्तेजक दुख जितना ही अपने संपर्क से दूर होगा, उतना ही लोक में क्रोध का स्वरूप सुंदर और मनोहर दिखाई देगा। दुख से आगे बढ़ने पर भी कुछ दूर तक क्रोध का कारण थोड़ा बहुत अपना ही दुख कहा जा सकता है, जैसे, अपने या आत्मीय परिजन का दुख, इष्ट-मित्र का दुख। उसके