2. हिन्दू-विवाह में परिवर्तन एवं प्रभावों को समझाइये?
Answers
Explanation:
परिचय स्मृतिकाल से ही हिंदुओं में विवाह को एक पवित्र संस्कार माना गया है और हिंदू विवाह अधिनियम १९५५ में भी इसको इसी रूप में बनाए रखने की चेष्टा की गई है। ... अब यह जन्म जन्मांतर का संबंध अथवा बंधन नहीं वरन् विशेष परिस्थितियों के उत्पन्न होने पर, (अधिनियम के अंतर्गत) वैवाहिक संबंध विघटित किया जा सकता है।
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Answer:
अब तक हिन्दू विवाह एक धार्मिक संस्कार एवं जन्म - जन्मान्तर का बन्धन माना जाता रहा है जिसे कभी भी भंग नहीं किया जा सकता । किन्तु हिन्दू विवाह अधिनियम , ने दोनों ही पक्षों को कुछ विशिष्ट परिस्थितियों में तलाक देने की सुविधा प्रदान की है । इससे स्त्रियों का शोषण समाप्त हुआ है और उनके अधिकारों में वृद्धि हुई है ।
Explanation:
ब्राह्म, दैव, आर्ष, प्राजापत्य, आसुर, गान्धर्व, राक्षस तथा पैशाच इन आठ प्रकार के विवाहों में ब्राह्म विवाह की ही प्रधानता धर्मशास्त्रकारों ने स्वीकार की है। ब्राह्म विवाह द्वारा ही दाम्पत्य जीवन सुखमय एवं चिरस्थायी होता है और उसी से धार्मिक सन्तति भी उत्पन्न होती है।
अत: सही उत्तर है, हिन्दू विवाह एक धार्मिक संस्कार एवं जन्म - जन्मान्तर का बन्धन माना जाता रहा है जिसे कभी भी भंग नहीं किया जा सकता । किन्तु हिन्दू विवाह अधिनियम , ने दोनों ही पक्षों को कुछ विशिष्ट परिस्थितियों में तलाक देने की सुविधा प्रदान की है । इससे स्त्रियों का शोषण समाप्त हुआ है और उनके अधिकारों में वृद्धि हुई है ।
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