2: जैन धर्म की शिक्षाएँ कब और कहाँ लिखी गयी थीं?
Answers
जैन धर्म की शिक्षाओं के महत्वपूर्ण पहलू कुछ विचारों पर आधारित हैं, जो बेहतर शांतिपूर्ण जीवन जीने में मदद कर सकते हैं। महावीर ने सही विश्वास, उचित आचरण और ज्ञान जैसे विचारों पर जोर दिया, ज्ञान बहुत महत्वपूर्ण है। ये वास्तव में एक व्यक्ति के जीवन को आकार देते हैं। श्रद्धा बहुत ही व्यक्तिगत है, जब तक यह समझ में नहीं आता है कि इसे उपयोगी माना जा सकता है, इसे सिखाया या प्रकाशित नहीं किया जा सकता। इसी तरह, मनुष्यों, जानवरों और पौधों के राज्य सहित सभी जीवित जीवों में एक शुद्ध आत्मा \ (जीव, जो एक जैन शब्द है) है, जो अपने स्वयं के संबंध में स्वतंत्र है और पूर्ण ज्ञान है। यह शुद्ध आत्मा कर्म जैसी स्थूल चीजों से भरी हुई है, जो वास्तव में हमारे ज्ञान को हमारी स्वतंत्रता को सीमित करती है और अंत में हमें एक दूसरे के साथ बांधती है। जैन धर्म में कर्म का एक अलग अर्थ है। यह जीवित प्राणियों, काम या काम के भाग्य को नियंत्रित करने वाला रहस्यमय बल नहीं है, लेकिन यह बस एक बहुत ही महीन पदार्थ के कंपोजिट को संदर्भित करता है जो इंद्रियों के लिए अनुचित है। एक आत्मा इस मामले के साथ अपनी बातचीत के साथ महान परिवर्तन से गुजरती है। महावीर कर्म में विश्वास करते थे और हमें कर्म के दुखों से मुक्त करते हैं और मोक्ष या निर्वाण प्राप्त करते हैं। महावीर का ईश्वर पर कोई विश्वास नहीं था, लेकिन सभी आत्माओं में एक शक्ति के अस्तित्व में विश्वास था, जो सर्वशक्तिमान है।
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Answer:
जैन धर्म भारत की श्रमण परम्परा से निकला प्राचीन धर्म और दर्शन है। जैन अर्थात् कर्मों का नाश करनेवाले 'जिन भगवान' के अनुयायी। सिन्धु घाटी से मिले जैन अवशेष जैन धर्म को सबसे प्राचीन धर्म का दर्जा देते है।[1]
उदयगिरि की रानी गुम्फा
सम्मेदशिखर, राजगिर, पावापुरी, गिरनार, शत्रुंजय, श्रवणबेलगोला आदि जैनों के प्रसिद्ध तीर्थ हैं। पर्यूषण पर्व या दशलाक्षणी, दीपावली, श्रुत पंचमीऔर रक्षाबंधन इनके मुख्य त्यौहार हैं। अहमदाबाद, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और बंगाल आदि के अनेक जैन आजकल भारत के अग्रगण्य उद्योगपति और व्यापारियों में गिने जाते हैं।
जैन धर्म का उद्भव की स्थिति अस्पष्ट है। जैन ग्रंथो के अनुसार धर्म वस्तु का स्वाभाव समझाता है, इसलिए जब से सृष्टि है तब से धर्म है, और जब तक सृष्टि है, तब तक धर्म रहेगा, अर्थात् जैन धर्म सदा से अस्तित्व में था और सदा रहेगा। इतिहासकारो द्वारा [2][3][4][5][6] जैन धर्म का मूल भी सिंधु घाटी सभ्यता से जोड़ा जाता है जो हिन्द आर्य प्रवास से पूर्व की देशी आध्यात्मिकता को दर्शाता है। सिन्धु घाटी से मिले जैन शिलालेख भी जैन धर्म के सबसे प्राचीन धर्म होने की पुष्टि करते है। [7][8][9] अन्य शोधार्थियों के अनुसार श्रमण परम्परा ऐतिहासिक वैदिक धर्म के हिन्द-आर्य प्रथाओं के साथ समकालीन और पृथक हुआ।[10]
जैन ग्रंथो (आगम्) के अनुसार वर्तमान में प्रचलित जैन धर्म भगवान आदिनाथ के समय से प्रचलन में आया। यहीं से जो तीर्थंकर परम्परा प्रारम्भ हुयी वह भगवान महावीर या वर्धमान तक चलती रही जिन्होंने ईसा से ५२७ वर्ष पूर्व निर्वाण प्राप्त किया था। भगवान महावीर के समय से पीछे कुछ लोग विशेषकर यूरोपियन विद्वान् जैन धर्म का प्रचलित होना मानते हैं। उनके अनुसार यह धर्म बौद्ध धर्म के पीछे उसी के कुछ तत्वों को लेकर और उनमें कुछ ब्राह्मण धर्म की शैली मिलाकर खडा़ किया गया। जिस प्रकार बौद्धों में २४ बुद्ध है उसी प्रकार जैनों में भी २४ तीर्थंकर है। जैन शब्द जिन शब्द से बना है। जिन बना है 'जि' धातु से जिसका अर्थ है जीतना। ''जिन अर्थात जीतने वाला'' जिसने स्वयं को जीत लिया उसे जितेंद्रिय कहते हैं।
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