2. ज्ञानमार्ग एकाकी के आधार पर 'ज्ञान' विषय पर
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दुनिया में जानने योग्य अनेक बातें हैं परन्तु उनमें सबसे महत्वपूर्ण है स्वयं को जानना। जिसे आत्म ज्ञान नहीं होता उसका शास्त्रों का ज्ञान बेकार है। आत्मज्ञान का मतलब है स्वयं को प्रकाशित करना। अपनी कमियों, खूबियों और क्षमताओं के प्रति जागरूक होना। असमंजस,असहजता एवं संशय की स्थिति से बाहर निकल कर सहज एवं सरल जीवन जीना।
प्रकाश जो अग्नि से उत्पन्न होता है और सभी ज्ञान का मूल स्रोत है। प्रकाश हीं आपका स्वयं का परिचय आपकी आत्मा से करा सकता है तथा आपके जीवन के सत्य को प्रकट कर सकता है। प्रकाश के सिवा इस कार्य को कोई और नहीं कर सकता। सत्य एवं सत्ता ( परमात्मा ) को प्रकाश में हीं जाना जा सकता है। प्रकाश के सहारे हीं पहले आत्मा फिर परमात्मा तक पहुंचा जा सकता है। जिन्हों ने भी प्रकाश के सहारे, प्रकाश का हीं शिष्य बनकर, अपनी आत्मा को जानने की कोशिश की है, जिन्हों ने भी इस मार्ग से सत्य को खोजा है वे अपने जीवन में असमंजसता को दूर कर सहजता को उपलब्ध हुए हैं। समस्त दुखों से मुक्ति पाकर सुख, शांति एवं समृद्धि को आमंत्रित किये हैं। अन्य मार्गों की अपेक्षा यह मार्ग ज्यादा सरल एवं सहज है तथा सभी बंधनों से मुक्त होते हुए भी मुक्तिदाता और ज्ञान दाता यही है। प्रकाश के सहारे आत्मा को जानना हीं एकमात्र सत्य और सुलभ मार्ग है। प्रकाश के समक्ष स्वयं से पूछा गया प्रश्न का उत्तर हमारी अंतरात्मा की आवाज होती है । इस मार्ग में हमें कोई उत्तर अथवा ज्ञान बाहर से नहीं मिलाता बल्कि ज्योति के समक्ष बैठकर स्वयं से हीं सही प्रश्न करना होता है। प्रतिदिन एक प्रकाश प्रश्न स्वयं से पूछनी होती है। वास्तव में स्वयं से सही प्रश्न करना हीं सर्वोतम उत्तर पाने का सरल और सटीक मार्ग है। हम ज्यों हीं ज्योति के समक्ष बैठकर ज्योति को हीं गुरु एवं ईश्वर का स्वरुप मानकर प्रकाश मार्ग के सवालों को स्वयं से पूछना शुरू करते हैं, स्वयं से हीं बात करना शुरू करते हैं, वैसे हीं हमारी आत्मा का प्रकाश उस प्रश्न के उत्तर की खोज में विस्तारित होना शुरु हो जाता है और तब जो उत्तर हम पाते हैं वह हमारा अपना होता है, हमारे अपने अनुभव पर आधारित होता है,व्यावहारिक और कारगर होता है। वही उत्तर हमारे लिए सही ज्ञान होता है जो सचमुच हमारी आत्मा को पूर्ण प्रकाशित कर सकता है। स्वयं से बात करना हमारे लिए बेहद जरुरी है क्योंकि हम स्वयं से अधिक किसी की नहीं सुनते।
तो आइये, आज से हीं आत्म ज्ञान के इस परम कल्याणकारी मार्ग पर चलने की घोषणा करके जीवन के सभी भ्रम को दूर कर खुशहाली को आमंत्रित करें। प्रकाश मार्ग के ज्ञान दीप प्रज्जवलित कर मन हीं मन कहें -
" हे आत्मारूपी प्रकाश,तू तो ईश्वर के सबसे करीब है, तू सबकुछ जानने वाला जातवेदा है, मैं अज्ञानी, अंधकार से घिरा एक निरीह प्राणी तुम्हारे शरण में आया हूँ। तुही हमें उस अविनाशी तक पहुँचने की सही राह को प्रकाशित कर सकता है,उसके बारे में कुछ बता सकता है। मैं ( अपना नाम,गोत्र) इसी क्षण से तुम्हें हीं अपना गुरु बनाता हूँ, मैं अपना शिष्य भाव तुम्हीं को अर्पित करता हूँ। अब तुही मेरे ज्ञान मार्ग को रौशनी दो।"
हरेक मनुष्यों में प्रकाश की शिष्यता अवतरित हो, यही प्रकृति की परम इच्छा है।
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“इस संसार से पलायन करने के दो मार्ग हैं-एक प्रकाश का और दूसरा अंधकार का।
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आत्मविश्वास !!
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