Hindi, asked by deepamishraaa, 7 months ago


2. जिस प्रकार वृक्ष अपने फल स्वयं नहीं खाता तथा नदी अपने जल का संचय नहीं करती, उसी प्रकार साधु अपनी स्वार्थपूर्ति के
लिए नहीं, अपितु दूसरों के हित के लिए ही शरीर धारण करता है।​

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Answered by Siddamini
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