(2) जीवन रूपी
यात्रा में कैसे अनुभव आते हैं?
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जो साथ न मेरा दे पाए, उनसे कब सूनी हुई डगर, मै भी न चलूं तो भी क्या राही मर लेकिन राह अगर इस पथ पर वे ही चलते हैं, जो चलने का पा गए स्वाद जिस जिससे पथ पर स्नेह मिला उस-उस राही को धन्यवाद| क कवि के अनुसार जीवन कैसा है? ख जीवन रुपी यात्रा में कैसे कैसे अनुभव आते है? ग मंजिल तय करना खेल क्यों नही है?
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