Hindi, asked by poonamshaw789, 1 month ago

2. "किंतु तारे की छाँव में भी उनके मस्तक के श्रमबिंदु जब-तब चमक ही पड़ते।' पाठ के आधार पर कथन को स्पष्ट कीजिए|​

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Answered by bhatiamona
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2. "किंतु तारे की छाँव में भी उनके मस्तक के श्रमबिंदु जब-तब चमक ही पड़ते।' पाठ के आधार पर कथन को स्पष्ट कीजिए|​

"किंतु तारे की छाँव में भी उनके मस्तक के श्रमबिंदु जब-तब चमक ही पड़ते।' ‘बालगोबिन भगत’ पाठ के इस कथन के माध्यम से लेखक यह कहना चाह रहा है कि बालगोबिन भगत श्रमजीवी थे, जिन पर मौसम की जटिलता का भी कोई असर नहीं पड़ता था। चाहे सर्दी हो या गर्मी वह में सुबह तड़के ही उठ जाते थे और गांव के बाहर ही पोखरे के ऊंचे भिड़े पर अपनी खँजड़ी लेकर बैठ जाते और गाना टेरने यानि गाने लगते थे।

     लेखक को सुबह-सुबह देर तक सोने की आदत थी लेकिन एक सर्दी की सुबह बालगोबिन भगत की खँजड़ी की आवाज सुनकर स्वयं को रोक ना कर सका और वहां पहुंच गया, जहां पर पर गाने में मस्त थे। उस दिन कड़ाके की ठंड थी, लेखक ठंड से कँपकपा रहा था। आसमान में तारे अभी तक चमक रहे थे लेकिन बाल गोविंद भगत गाने में इतने मस्त कि उनकी माथे पर उनकी श्रम जीविता स्पष्ट दिखाई पड़ रही थी। इस कड़ाके की ठंड का भी उन पर कोई असर नही था।

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