2. 'कुटज अपने मन पर सवारी करता है, मन को अपने पर सवार नहीं होने देता' कथन
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5) कुटज अपने मन पर सवारी करता है, मन को अपने पर सवार नहीं होने देता। (6) कुटज इन सब मिथ्याचारों से मुक्त है। वह वशी है। ... (7) सामने कुटज का पौधा खड़ा है वह नाम और रूप दोनों में अपनी अपराजेय जीवनी शक्ति की घोषण करता है।
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