Hindi, asked by abhinavgnath7, 8 months ago

2.
कबीर जी की कोई दो साखियां की सप्तसत्र
व्याख्या लिखिए ​

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Answered by Anonymous
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Answer:

आवत गारी एक है, उलटत होइ अनेक।

कह कबीर नहिं उलटिए,वही एक की एक।।2।।

माला तो कर में फिरै, जीभि फिरै मुख माँहि।

मनुवाँ तो दहुँ दिसि फिरै, यह तौ सुमिरन नाहिं।।3।।

कबीर घास न नींदिए, जो पाऊँ तलि होइ।

उड़ि पड़ै जब आँखि मैं, खरी दुहेली होइ।।4।।

जग में बैरी कोइ नहीं, जो मन सीतल होय।

या आपा को डारि दे, दया करै सब कोय।।5।।

Explanation:

दूसरे दोहे में कबीर जी ने कहा है कि कभी भी अपशब्द के बदले में किसी को अपशब्द मत कहो।

तीसरे दोहे में कबीरदास जी ने मन की चंचलता का वर्णन किया है। उनके अनुसार इंसान जीभ और माला से भले ही प्रभु का नाम जपता रहता है, लेकिन उसका मन अपनी चंचलता त्याग नहीं पाता है।

चौथे दोहे में कबीर जी कहते हैं कि कभी भी किसी को उसके छोटे या बड़े होने का घमंड नहीं करना चाहिए, कभी-कभी छोटे लोग भी बड़ों पर बहुत भारी पड़ जाते हैं, जैसे हाथी पर चींटी भारी पड़ जाती है।

पाँचवें दोहे में संत कबीर कहते हैं कि मानव अपनी मानसिक कमजोरियां दूर करके, अपने संसार को ख़ुशहाली से भर सकता है।

मुझे आशा है कि यह उत्तर आपके लिए उपयोगकर्ता है

धन्यवाद

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