2. कभी चौकड़ी भरते मृग से, भूपर चरण नही' धरते,
मत मतगंज कभी झूमते सजग शशक नभ को चलते।
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Answers
Sometimes the deer fills the quartet, the earth does not keep its feet,
Do not vote, ever swinging conscious Shashak walks to Nabha.
कभी चौकड़ी भरते मृग से, भूपर चरण नही धरते,
मत मतगंज कभी झूमते सजग शशक नभ को चलते।
संदर्भ : यह पंक्तियां कवि सुमित्रानंदन पंत द्वारा रचित 'बादल' नामक कविता से ली गई है। इन पंक्तियों के माध्यम से कवि ने बादलों की विशेताओं का काव्यमयी अंदाज में गुणगान किया है।।
व्याख्या :
कवि कहते हैं कि बादल आकाश में चौकड़ी मारते हैं, तो ऐसा लगता है, कि जैसे जमीन पर कोई हिरन चौकड़ी मारता हुआ दौड़ा चला जा रहा हो। बादल आकाश में विचरण करते हैं, इसलिए वह जमीन पर अपने पांव नहीं रखते।
वह मदमस्त होकर आकाश में निरंतर झूमते रहते हैं। इन झूमते हुए बादलों को देखकर ऐसा लगता है कि जैसे आसमान में कोई चपल-चंचल खरगोश विचरण कर रहा हो और घास को चर रहा हो।
#SPJ3