2. कवि ने यौवन की तुलना निर्झर की किस गति से की है?
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बढ़ता चट्टानों पर चढ़ता चलता यौवन से पदमाता। लहरें उठती हैं, गिरती हैं, नाविक तट पर पछताता है। तब यौवन बढ़ता है आगे, निर्झर बढ़ता ही जाता है। निर्झर में गति ही जीवन है, रुक जाएगी यह गति जिस दिन।
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निर्झर में गति है, यौवन है, वह आगे बढ़ता जाता है। धुन एक सिर्फ है, चलने की, अपनी मस्ती में गाता है। कवि आरसी प्रसाद सिंह इन पंक्तियों में निर्झर के आवाज से मस्तीपूर्ण जीवन की विशिष्टता का उद्घाटन करते हैं। कवि का कहना है कि निर्झर अपनी जलपूर्णता में पूरी गतिशीलता ये युक्त रहता है।
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