Hindi, asked by bittuthakur5411, 2 months ago

2.
लोभी व्यक्ति धन क्यों इकट्ठ करता है?​

Answers

Answered by itzPapaKaHelicopter
1

धन आदमी के जीवन में बहुत महत्व रखता है आइए जानते हैं,अर्थ के लोभी व्यक्ति को यदि धनइकट्ठा करता है जिससे उसे किसी समय उसको कमी धन के लोभी व्यक्ति ईमान को ताक पर रख कर किसी भी तरह धन जुटाने में लगे.

 \\  \\  \\  \\  \\ \sf \colorbox{gold} {\red(ANSWER ᵇʸ ⁿᵃʷᵃᵇ⁰⁰⁰⁸}

Answered by ekta88069
1

Explanation:

लोभ मनुष्य के चरित्र की कायरतापूर्ण अभिव्यक्ति है। लोभ का अर्थ है, जो वस्तु आपकी नहीं है, उसे प्राप्त करने का प्रयास करना। इस संसार में अनेक वस्तुएं हैं, उनमें से कुछ हमारे पास हैं कुछ दूसरों के पास हैं। अगर प्रत्येक व्यक्ति यह प्रयास करे कि सभी वस्तुएं उसी के पास हो जाएं तो यह संभव नहीं है। ऐसा इसलिए, क्योंकि पूरा संसार किसी एक व्यक्ति का तो हो नहीं सकता और जो आपके पास नहीं है अगर आप उसे कायरतापूर्ण ढंग से प्राप्त करना चाहते हांे, तो लोभ के कारण आपका चरित्र नीचे गिरता है। लोभ मनुष्य के व्यक्तित्व के विकास का बहुत बड़ा अवरोधक है।

लोभी व्यक्ति कभी भी स्वाभिमानी नहीं हो सकता। लोभी को तो स्वाभिमान होता ही नहीं, क्योंकि मांगना ही लोभ है। जो व्यक्ति किसी से कुछ भी मांगता हो, तो वह व्यक्ति कभी भी चरित्रवान नहीं हो सकता। मांगने वाला हमेशा छोटा होता है और जो स्वयं को छोटा मानता है वह कभी भी बड़ा नहीं हो सकता। अगर मनुष्य बड़ा बनना चाहता है, तो उसे लोभ को त्यागना होगा। लोभ का दमन मुश्किल है, लेकिन नामुमकिन नहीं है। साधना के क्षेत्र में लोभ के दमन के लिए संतोष का पाठ पढ़ाया जाता है, जो व्यक्ति संतोष से रहना सीख लेता है उसे कभी किसी से कुछ भी मांगने की जरूरत नहीं पड़ती। जब एक बार जीवन में संतोष आ जाए तो उसके मन में लोभ कभी जन्म नहीं ले सकता। लोभ एक ऐसी कामना है, जिसकी पूर्ति कभी नहीं हो पाती।

लोभ से तृप्ति नहीं होती। ऐसा इसलिए, क्योंकि जिस प्रकार काम से काम की पूर्ति नहीं होती, उसी प्रकार लोभ की लोभी से पूर्ति नहीं होती। जितना वह लोभ करता जाता है, उसकी कामना बढ़ती जाती है इसलिए लोभ से बचने का एक ही रास्ता है कि मनुष्य इस विकार से बचने के लिए साधना की गहराई में प्रवेश कर जाए ऐसे में उसके मन में लोभ की जितनी परतें रहती हैं, वह टूट जाती हैं और वह परमात्मा द्वारा प्रदत्त वस्तुओं को स्वीकार कर पूरी तरह संतोष से जीने लगता है। लोभ मनुष्य के चरित्र को पतन की ओर ले जाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। लोभी व्यक्ति कभी स्वाभिमानी नहीं बन सकता। स्वाभिमान मनुष्य के जीवन का श्रृंगार है, किंतु लोभी दीनहीन बनकर पात्र-अपात्र का विचार किए बगैर किसी के भी सामने हाथ पसार देता है।

Similar questions