Hindi, asked by jfkdkdkmdprabhakantr, 8 months ago


2. मोहन धनराम के आफर क्यों गया था? उस समय धनराम किस काम में तल्लीन था ?​

Answers

Answered by somyasingh19
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1. लंबे बँटवाले हँसुवे को लेकर वह घर से इस उद्देश्य से निकला था कि अपने खेतों के किनारे उग आई काँटेदार झाड़ियों को काट-छाँटकर साफ़ कर आएगा। बूढे वंशीधर जी के बूते का अब यह सब काम नहीं रहा। यही क्या, जन्म भर जिस पुरोहिताई के बूते पर उन्होंने घर संसार चलाया था, वह भी अब वैसे कहाँ कर पाते हैं। यजमान लोग उनकी निष्ठा और संयम के कारण ही उन पर श्रद्धा रखते हैं लेकिन बुढ़ापे का जर्जर शरीर अब उतना कठिन श्रम और व्रत-उपवास नहीं होल पाता।

प्रश्न

1. मोहन घर से किस उद्देश्य के लिए निकला।

2. वशीधर के लिए कौन सा कार्य कठिन हो गया?

3. यजमान किस पर श्रद्धा रखते हैं तथा क्यों?

उत्तर-

1. मोहन घर से लंबे बँटवाला हँसुआ लेकर निकला। उसका उद्देश्य था कि इससे वह अपने खेतों के किनारे उग आई काँटेदार झाड़ियोंनको काट-छाँटकर साफ़ कर देगा।

2. वंशीधर अब बूढ़ा हो गए थे। वे पुरोहिताई का काम तथा खेती से घर का गुजारा करते थे। अधिक उम्र व जर्जर शरीर के कारण अब वे कठिन श्रम व व्रत उपवास को नहीं कर पाते थे।

3 यजमान वंशीधर पर श्रद्धा रखते हैं। वे उनकी निष्ठा व संयम की प्रशंसा करते हैं और इसी कारण उनका मान-सम्मान करते हैं।

निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए :

2. मोहन के प्रति थोड़ी-बहुत ईष्य रहने पर भी धनराम प्रारंभ से ही उसके प्रति स्नेह और आदर का भाव रखता था। इसका एक कारण शायद यह था कि बचपन से ही मन में बैठा दी गई जातिगत हीनता के कारण धनराम ने कभी मोहन को अपना प्रतिद्वंद्वी नहीं समझा बल्कि वह इसे मोहन का अधिकार समझता रहा था। बीच-बीच में त्रिलोक सिंह मास्टर का यह कहना कि मोहन एक दिन बहुत बड़ा आदमी बनकर स्कूल का और उनका नाम ऊँचा करेगा, धनराम के लिए किसी और तरह से सोचने की गुंजाइश ही नहीं रखता था। और धनराम! वह गाँव के दूसरे खेतिहर या मज़दूर परिवारों के लड़कों की तरह किसी प्रकार तीसरे दर्जे तक ही स्कूल का मुँह देख पाया था।

प्रश्न

1. धनराम मोहन को अपना प्रतिद्वद्वी क्यों नहीं मानता था?

2. त्रिलोक मास्टर ने मोहन के बारे में क्या घोषणा की थी?

3 धनराम की नियति कयौं थे?

उत्तर-

1. धनराम मोहन को अपना प्रतिद्वंद्वी नहीं मानता था, क्योंकि उसके मन में बचपन से नीची जाति के होने का भाव भर दिया गया था। इसलिए वह मोहन की मार को उसका अधिकार समझता था।

2. त्रिलोक मास्टर ने यह घोषणा की थी कि मोहन एक दिन बहुत बड़ा आदमी बनकर स्कूल व उनका नाम रोशन करेगा।

3 धनराम गाँव के गरीब तबके से संबंधित था। खेतिहर या मज़दूर परिवारों के बच्चों की तरह वह तीसरी कक्षा तक ही पढ़ पाया। उसके बाद वह परंपरागत काम में लग गया। यही उसकी नियति थी।

निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए :

3. धनराम की मंदबुद्ध रही हो या मन में बैठा हुआ इ कि पूरे दिन घोटा लगाने पर भी उसे तेरह का पहाड़ा याद नहीं हो पाया था। छुट्टी के समय जब मास्साब ने उससे दुबारा पहाड़ा सुनाने को कहा तो तीसरी सीढ़ी तक पहुँचते-पहुँचते वह फिर लड़खड़ा गया था। लेकिन इस बार मास्टर त्रिलोक सिंह ने उसके लाए हुए बेंत का उपयोग करने की बजाय ज़बान की चाबुक लगा दी थी, तेरे दिमाग में तो लोहा भरा है रे विद्या का ताप कहाँ लगेगा इसमें?' अपने थैले से पाँच छह दतियाँ निकालकर उन्होंने धनराम को धार लगा लाने के लिए पकड़ा दी थीं। किताबों की विद्या का ताप लगाने की सामध्य धनराम के पिता की नहीं थी। धनराम हाथ-पैर चलाने लायक हुआ ही था कि बाप ने उसे धौंकनी फेंकने या सान लगाने के कामों में उलझाना शुरू कर दिया और फिर धीरे-धीरे हथौड़े से लेकर घन चलाने की विद्या सिखाने लगा। फर्क इतना ही था कि जहाँ मास्टर त्रिलोक सिंह उसे अपनी पसंद का बेत चुनने की छूट दे देते थे वहाँ गंगाराम इसका चुनाव स्वयं करते थे और ज़रा सी गलती होने पर छड़, बेंत, हत्था जो भी हाथ लग जाता उसी से अपना प्रसाद दे देते। एक दिन गंगाराम अचानक चल बसे तो धनराम ने सहज भाव से उनकी विरासत सँभाल ली और पास-पड़ोस के गाँव वालों को याद नहीं रहा वे कब गंगाराम के आफर को धनराम का आफर कहने लगे थे।

प्रश्न

1. धनराम तेरह का पहाड़ा क्यों नहीं याद कर पाया?

2. ज़बान की चाबुक' से क्या अभिप्राय है? त्रिलोक सिह ने धनराम को क्या कहा?

3. अध्यापक और लोहार के दड़ देने में क्या अंतर था?

उत्तर-

1. धनराम ने तेरह का पहाड़ा सारे दिन याद किया, परंतु वह इस काम में सफल नहीं हो पाया। इसके दो कारण हो सकते हैं।

(क) धनराम की मंदबुद्ध

(ख) मन में बैठा हुआ पिटाई का डर।

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