Hindi, asked by anjalivish2979, 1 month ago

(2) मुरझाए हुए फूल की आत्मकथा​

Answers

Answered by anika1312
6

Answer:

एक मुरझाये फूल की आत्मकथा-

शायद यह कल की बात है।

हाँ यह कल की ही तो है।

जन्म के बाद जब मैंने खुद को पत्तियों के बीच ढका पाया था। काफी इंतजार के बाद सूरज की रोशनी देखी थी। हवा भी कितनी सरल और शीतल थी। चारों ओर हरियाली ही हरियाली थी इस पार्क में।

पार्क! हाँ मेरा जन्मस्थान, ये पार्क ही तो मेरा जन्मस्थान था। चारों ओर फूल ही फूल अपने-अपने परिवार के साथ मुस्कराते हुए।

बचपन में मैं एक छोटी कली था जो कल की चिंता छोड़कर अपने में मगन था, जैसे और सभी बच्चे होते हैं।

मैंने देखा था बहुत सारे बच्चों को हंसते और खिलखिलाते हुए इस पार्क में।

कल की कोई चिंता के बिना, जिम्मेदारी से मुक्त, जब तक कि उनके माता-पिता उनके कंधों पर अपने सपनों का बोझ नहीं डाल देते।

जवानी में कदम रखने के बाद मैं पूरा फूल बन गया था। मैं पार्क का सबसे सुंदर फूल नहीं था। लेकिन फूल होने के कारण मुझमें खुशबू का गुण प्राकृतिक था। लेकिन शायद लोग खुशबू से ज्यादा खूबसूरती को महत्व देते हैं।

फूल की खुशबू जैसे इंसानों की इंसानियत। हाँ, वे इसका उपयोग कम करते हैं और दुनियादारी के पीछे ही भागते रहते है।

लेकिन मैं एक फूल हूँ और यह मेरा कर्तव्य है कि जो खुशबू मुझे मिली है मैं उसे हमेशा फैलता रहूं। चाहे मेरा कर्मभूमि जो भी हो-

मैं प्यार बन सकता था, उपहार बन सकता था, किसी के कोट पर लगकर अलंकृत हो सकता था, मंदिर में चढ़कर पूजा बन सकता था, या शहीद की चिता पर देशप्रेम में न्यौछावर हो सकता था।

लेकिन भगवान ने मुझे अपनी मंजिल चुनने का अधिकार नहीं दिया था।

मैं इंतज़ार करता रहा लेकिन कोई मेरे पास नहीं आया।समय बीतता गया लोग पार्क से जाने लगे थे। शायद मौसम खराब था क्योंकि आकाश में बहुत सारे बादल थे।

अचानक एक तूफान आया लोग अपने घरों की ओर दौड़ने लगे। मैं प्रकृति का क्रूर रूप देख ही रहा था कि हवा का एक झोंका मेरी ओर आया और मैं एक झटके में अपने पौधे से अलग हो गया।

अंतिम साँसों के साथ अगली सुबह मैं पत्तियों के पास जमीन पर मुरझाया हुआ पड़ा था।

मुझे मेरे जीवन में कोई मंजिल नहीं मिली और अब मैं अपने घर से भी दूर पड़ा था । मैं किसी भी मंदिर, मस्जिद, किताब या फूलदान में हो सकता था, लेकिन मैं कचरे की तरह जमीन पर पड़ा हूँ।

लेकिन मुझे इस बात का बिल्कुल भी दुःख नहीं है क्योंकि यह मेरे वश में नहीं था ।

लेकिन यह एक फूल का कर्तव्य है कि वह हमेशा खुशबू बिखेरता रहे जगह चाहे जो भी हो। क्योंकि मंजिलें तो केवल हालात और संयोग पर निर्भर करती हैं।

और अब मैं अपनी खुशबू समेटकर इस दुनिया से विदा ले रहा हूँ।

-आपका शुभचिंतक (एक फूल)

Similar questions