Hindi, asked by arvindpandey7708, 3 months ago

2. महात्मा गाँधी सच्ची अहिंसा के लिए किस गुण का होना आवश्यक मानते थे?
(क) भीरुता का (ख) निर्मीकता का (ग) सज्जनता का (ध) क्रूरता का​

Answers

Answered by bhartirathore299
10

Answer:

सज्जनता का

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Answered by katkadesanjivan12
2

Answer:

महात्मा गाँधी कहते हैं कि एकमात्र वस्तु जो हमें पशु से भिन्न करती है वह है अहिंसा। व्यक्ति हिंसक है तो फिर वह पशुवत है। मानव होने या बनने के लिए अहिंसा का भाव होना आवश्यक है।

गाँधी जी कहते हैं कि हमारा समाजवाद अथवा साम्यवाद अहिंसा पर आधारित होना चाहिए जिसमें मालिक-मजदूर एवं जमींदार-किसान के मध्य परस्पर सद्भावपूर्ण सहयोग हो। नि:शस्त्र अहिंसा की शक्ति किसी भी परिस्थिति में सशस्त्र शक्ति से सर्वश्रेष्ठ होगी। सच्ची अहिंसा मृत्युशैया पर भी मुस्कराती रहेगी। बहादुरी, निर्भीकता, स्पष्टता, सत्यनिष्ठा, इस हद तक बढ़ा लेना कि तीर-तलवार उसके आगे तुच्छ जान पड़ें, यही अहिंसा की साधना है। शरीर की नश्वरता को समझते हुए, उसके न रहने का अवसर आने पर विचलित न होना अहिंसा है।

अहिंसा की पहचान :

भगवान महावीर, भगवान बुद्ध और महात्मा गाँधी की अहिंसा की धारणाएँ अलग-अलग थी। फिर भी वेद, महावीर और बुद्ध की अहिंसा से महात्मा गाँधी प्रेरित थे। हम जब भी अहिंसा की बात करते हैं तो अक्सर यह खयाल आता है कि किसी को शारीरिक या मानसिक दुख न पहुँचाना अहिंसा है। मन, वचन और कर्म से किसी की हिंसा न करना अहिंसा कहा जाता है। यहाँ तक कि वाणी भी कठोर नहीं होनी चाहिए। फिर भी अहिंसा का इससे कहीं ज्यादा गहरा अर्थ है।

शांति का आधार अहिंसा :

योग और जैन दर्शन कहता है कि अहिंसा की साधना से बैर भाव निकल जाता है। बैर भाव के जाने से काम, क्रोध आदि वृत्तियों का निरोध होता है। वृत्तियों के निरोध से शरीर निरोगी बनता है। मन में शांति और आनंद का अनुभव होता है। सभी को मित्रवत समझने की दृष्टि बढ़ती है। सही और गलत में भेद करने की ताकत आती है। यह सब कुछ मन में शांति लाता है।

परपीड़क और स्वपीड़क न बने :

खुद के और दूसरे के बारे में हिंसा का विचार भी न लाने से चित्त में स्थिरता आती है। परपीड़क और स्वपीड़क न बने। ऐसा सोचने और करने से सकारात्मक ऊर्जा का जन्म होता है। सकारात्मक उर्जा से आपके आस-पास का माहौल भी खुशनुमा होने लगता है। यह खुशनुमा माहौल ही जीवन में किसी प्रकार का कोई कष्ट नहीं होने देता। यही आपकी सफलता का आधार है। इसी से आपके रिश्ते-नाते कायम रहेंगे। अहिंसा से ही स्वयं को स्वयं की देह, मन और बुद्धि के सारे क्रिया-कलापों से उपजे दुखों से स्वतंत्रता मिलेगी।

-( वेबदुनिया डेस्क )

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