Hindi, asked by kartik5262, 9 months ago

2 मन की मन ही माँझ रही।
कहिए जाइ कौन पै ऊधौ, नाहीं परत कही।
अवधि अधार आस आवन की, तन मन बिथा सही।
अब इन जोग संदेसनि सुनि-सुनि, बिरहिनि बिरह दही।
चाहति हुती गुहारि जितहिं तैं, उत तें धार बही।
'सूरदास' अब धीर धरहिं क्यौं, मरजादा न लही॥​

Answers

Answered by vanshvaibhaw
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Answer:उपरोक्त पद में महाकवि सूरदास गोपियों के मन व्यथा का वर्णन करते हुये कहते हैं कि हमारे मन में विचारों की उथल पुथल मची हुई है ,वो एक ही बात को पुनः पुनः विचार करती है।हे उधव यह मन की बातें किससे कहूँ अपने मन की बात किसी से नहीं कही जाती ।कृष्ण के आने कीआशा में हमनें यह तन और मन की व्यथा सहन की थी।अब तुम्हारे मुख से यह योगसंदेश सुन सुन कर हमारी विरह व्यथा बढती जा रही है ।अब हम अपने आँसूओं के सैलाब को नहीं रोक पा रही हैं। गोपियाँ कहती है कि अब हम अधिक धैर्य धारण नहीं कर सकती हैं ।

Explanation:

Answered by Anonymous
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Answer:

गोपियाँ उद्धव से अपनी पीड़ा बताते हुए कह रही हैं कि श्री कृष्ण के गोकुल छोड़ कर चले जाने के उपरांत, उनके मन में स्थित कृष्ण के प्रति प्रेम-भावना मन में ही रह गई है। वे सिर्फ़ इसी आशा से अपने तन-मन की पीड़ा को सह रही थीं कि जब कृष्ण वापस लौटेंगे, तो वे अपने प्रेम को कृष्ण के समक्ष व्यक्त करेंगी और कृष्ण के प्रेम की भागीदार बनेंगी। परन्तु जब उन्हें कृष्ण का योग-संदेश मिला, जिसमे उन्हें पता चला कि वे अब लौटकर नहीं आएंगे, तो इस संदेश को सुनकर गोपियाँ टूट-सी गईं और उनकी विरह की व्यथा और बढ़ गई।

अब तो उनके विरह सहने का सहारा भी उनसे छिन गया अर्थात अब श्री कृष्ण वापस लौटकर नहीं आने वाले हैं और इसी कारण अब उनकी प्रेम-भावना कभी संतुष्ट होने वाली नहीं है। उन्हें कृष्ण के रूप-सौंदर्य को दोबारा निहारने का मौका अब नहीं मिलेगा। उन्हें ऐसा प्रतीत हो रहा है कि अब वह हमेशा के लिए कृष्ण से बिछड़ चुकी हैं और किसी कारणवश गोपियों के अंदर जो धैर्य बसा हुआ था, अब वह टूट चुका है। इसी वजह से गोपियाँ वियोग में कह रही हैं कि श्री कृष्ण ने सारी लोक-मर्यादा का उल्लंघन किया है, उन्होंने हमें धोखा दिया है।

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