(2) मरुस्थलीकरण से आप क्या समझते हैं?
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मरुस्थलीकरण एक ऐसी भौगोलिक घटना है, जिसमें उपजाऊ क्षेत्रों में भी मरुस्थल जैसी विशिष्टताएँ विकसित होने लगती हैं। इसमें जलवायु परिवर्तन तथा मानवीय गतिवधियों समेत अन्य कई कारणों से शुष्क, अर्द्ध-शुष्क, निर्जल इलाकों की ज़मीन रेगिस्तान में बदल जाती है। इससे ज़मीन की उत्पादन क्षमता में ह्रास होता है।
Explanation:
वनों की अंधाधुंध कटाई और पर्यावरण को नुकसान पहुँचाने वाली इंसानी गतिविधियों के कारण धरती लगातार सिकुड़ती जा रही है। उपजाऊ ज़मीन मरुस्थल में बदल रही है। आज भारत सहित पूरा विश्व मरुस्थलीकरण की समस्याओं से जूझ रहा है। मरुस्थलीकरण के कारण हर साल लाखों लोग विस्थापित हो रहे हैं। इन्हीं समस्या से निपटने के लिये पूरा विश्व ‘संयुक्त राष्ट्र मरुस्थलीकरण रोकथाम अभिसमय’ (UNCCD) पर सहमत हुआ। UNCCD के पार्टियों का 14वां सम्मेलन (COP14) 2 सितंबर से 13 सितंबर तक भारत में आयोजित किया जा रहा है।
मरुस्थलीकरण एक ऐसी भौगोलिक घटना है, जिसमें उपजाऊ क्षेत्रों में भी मरुस्थल जैसी विशिष्टताएँ विकसित होने लगती हैं। इसमें जलवायु परिवर्तन तथा मानवीय गतिवधियों समेत अन्य कई कारणों से शुष्क, अर्द्ध-शुष्क, निर्जल इलाकों की ज़मीन रेगिस्तान में बदल जाती है। इससे ज़मीन की उत्पादन क्षमता में ह्रास होता है। मरुस्थलीकरण से प्राकृतिक वनस्पतियों का क्षरण तो होता ही है, साथ ही कृषि उत्पादकता, पशुधन एवं जलवायवीय घटनाएँ भी प्रभावित होती हैं।
वर्तमान स्थिति
भारत में भू-क्षरण का दायरा 96.40 मिलियन हेक्टेयर है जो कुल भौगोलिक क्षेत्र का 29.30 प्रतिशत है।
70 प्रतिशत भौगोलिक क्षेत्र शुष्क भूमि के रूप में है, जिसमें से 30 प्रतिशत भूमि भू-क्षरण की प्रक्रिया में तथा 25 प्रतिशत भूमि मरुस्थलीकरण की प्रक्रिया में है।
विज्ञान और पर्यावरण केंद्र (Centre for Science and Environment- CSE) की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2003-05 और 2011-13 के बीच 18.7 लाख हेक्टेयर भूमि का मरुस्थलीकरण हुआ है।
गुजरात, महाराष्ट्र, तमिलनाडु एवं पंजाब के क्रमश: 4, 3, 5 एवं 2 ज़िलों में मरुस्थलीकरण का प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखाई देता है।
हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश, गोवा, कर्नाटक, केरल, जम्मू-कश्मीर एवं हिमाचल प्रदेश के क्रमश: 2, 4, 4, 1, 2, 2, 5 एवं 3 ज़िले मरुस्थलीकरण की प्रक्रिया से गुज़र रहे हैं।
एक अन्य अध्ययन के अनुसार, विश्व में हर वर्ष 12 मिलियन हेक्टयर उत्पादक भूमि मरुस्थलीकरण और सूखे के कारण बंजर हो जाती है।
हर साल लगभग 20 मिलियन टन के बराबर अनाज के उत्पादन में कमी आ रही है।
विश्व के कुल क्षेत्रफल का पाँचवां भाग अर्थात् 20% हिस्सा मरुस्थल है।