Hindi, asked by ks05092006, 7 months ago

2 minute speech on mazhab nahi sikhata aapas mein bair karna​

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Answered by samarjhan6987
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अच्छाई हमेशा अच्छाई रहती है। उसका मूल स्वरूप-स्वभाव कभी विकृत नहीं हुआ करता। उस पर किसी एक व्यक्ति या धर्म-जाति का अधिकार भी नहीं हुआ करता। अपने मूल स्वरूप में मजहब भी एक अच्छाई का ही नाम है। मजहब, धर्म, फिरका, संप्रदाय और पंथ आदि सभी भाववाचक संज्ञांए एक ही पवित्र भाव और अर्थ को प्रकट करती हैं। सभी का व्यापक अर्थ उच्च मानवीय आदर्शों और आस्थाओं से अनुप्राणित होकर विभिन्न नामों वाले एक ही ईश्वर को हाजिर-नाजिर मान सत्कर्म करना और समग्र रूप से अच्छा बनना है। ऐसे कर्म कि जिनके करने से सारी मानवता ही नहीं, प्राणी मात्र और जड़ पदार्थों का भी कल्याण हो सके। इस मूल विचार से हटकर संकीर्ण-संकुचित हो जाने वाला भाव मजहब-धम्र आदि कुछ न होकर महज स्वार्थ एंव शैतान हुआ करता है। सभी मजहबों की बुनियादी अवधारणा शायद यही है।

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