2. निम्नलिखित में से किन्हीं दो अवतरणों की सप्रसंग व्या करें : "इस संसार से संपृक्ति एक रचनात्मक कर्म । इस कर्म के बिना मानवीयता अधूरी है ।
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प्रस्तुत पंक्ति समर्थ लेखक मलयज की 10 मई, 1978 की डायरी की है। मानव का संसार से जुड़ा होना निहायत जरूरी है। मानव संसार के यथार्थ का उपभोग करता है और उसकी सर्जना भी करता है। मानव अपने संसार का निर्माता स्वयं है। वह ही अपने संसार को जीता है और भोगता है। संसार से संपृक्ति न होने पर कोई कर्म ही न करे। कर्म करना जीवमात्र के अस्तित्व के लिए बहुत ही आवश्यक है। उसके होने की शर्त संसार को भोगने की प्रवृत्ति ही है। भोगने की इच्छा कर्म का प्रधान कारक है। इस तरह संसार से संपृक्ति होने पर जीवमात्र रचनात्मक कर्म की ओर उत्सुक होता है। इस कर्म बिना मानवीयता के अधूरी है, क्योंकि इसके बिना उसका अस्तित्व ही संशयपूर्ण हैं।
दिए गए अवतरण की सप्रसंग व्याख्या निम्न प्रकार से की गई है।
"इस संसार से संपृक्ति एक रचनात्मक कर्म । इस कर्म के बिना मानवीयता अधूरी है । "
- संदर्भ
प्रस्तुत पंक्तियां लेखक मलयज लिखित डायरी
" हंसते हुए मेरा अकेलापन " से ली गई है।उनका मूल नाम भरत श्रीवास्तव था।
- प्रसंग
प्रस्तुत प्रसंग लेखक मलयज लिखित डायरी "हंसते हुए मेरा अकेलापन" से 10 मई, 1978 का है। लेखक ने इस डायरी में अपने निजी जीवन के अनुभव व संसार की उथल पुथल का वर्णन किया है।
- व्याख्या
लेखक कहते है कि मनुष्य का इस संसार से जुड़े रहना आवश्यक है क्योंकि मनुष्य इस संसार के प्राकृतिक संसाधनों का उपभोग करता है। मानव उस सृष्टि का स्वयं ही सृजनकर्ता है।वह स्वयं निर्माता है।
यदि इस संसार में संक्ति न हो तो कोई कर्म ही न करे। जीवन के अस्तित्व के लिए कर्म करना अति आवश्यक है।कर्म का प्रधान कारक भोगने की इच्छा है। इसके बाद ही मानव संसार के रचनात्मक कार्यों को करने का इच्छुक होता है। मानवीयता कर्म के बिना अधूरी है क्योंकि कर्म न हो तो मानव का अस्तित्व भी न हो।