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2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखो.
I. भारत में बेरोजगारीकै विभिन्न प्रकारों काउल्लेख करें।
ii. भारत में गरीबी के कारणों काउल्लेख करें।
ifi, व्यापारिक तथा केन्द्रिय बैंको में अंतरलिखें।
iv. केन्द्रिय बैंको के कायाँ काउल्लेख करें।
Answers
Answer:
1. भारत में बेरोजगारीकै विभिन्न प्रकारों काउल्लेख इस प्रकार से है:-
(a)ऐच्छिक बेरोजगारी-
जब श्रमिक मजदूरी को वर्तमान दर पर काम करने के लिए तैयार न हो अथवा काम होने पर भी अपनी इच्छा से काम न करना चाहे तो ऐसी बेरोजगारी, ऐच्छिक बेरोजगारी कहलायेगी। बेरोजगारी का अनुमान लगाते समय ऐच्छिक बेरोजगारी को शामिल नहीं किया जाता।
(b) अनैच्छिक बेरोजगारी-
अनैच्छिक बेरोजगारी वह स्थिति है जिसमें श्रमिक मजदूरी की वर्तमान दर पर काम करने को तैयार हो परन्तु उन्हें काम नहीं मिले इसे खुली बेरोजगारी भी कहते हैं। बेरोजगारी से हमारा अभिप्राय अनैच्छिक बेरोजगारी से है।
(c)घर्षात्मक बेरोजगारी-
‘‘घर्षात्मक बेरोजगारी वह बेरोजगारी है जिसका संबंध एक गतिशील अर्थव्यवस्था में कार्य या नौकरी को बदलने से होता है।’’ श्रम बाजार की अपूर्णताओं के कारण लोग अस्थायी रूप से बेरोजगार हो जाते हैं यह अस्थायी बेरोजगारी घर्षात्मक बेरोजगारी कहलाती है। यह बेरोजगारी श्रम की गतिहीनता, कच्चे माल की कमी, रोजगार के अवसरों के विषय में जानकारी न होना, बिजली की कमी, मशीनों की टूट-फूट, लोगों की रोजगार बदलने की प्रवृत्ति, अच्छे रोजगार की तलाश आदि के कारण पाई जाती है। इस प्रकार की बेरोजगारी अस्थायी होती है।
(d)सरंचनात्मक बेरोजगारी-
‘‘संरचनात्मक बेरोजगारी वह बेरोजगारी है जो कछु उद्योगों के दीर्घकालीन ह्रास के कारण उत्पन्न होती है।’’ यह बेरोजगारी अर्थव्यवस्था के संरचनात्मक ढांचे से सम्बन्धित है। यह बेरोजगारी उस स्थिति में उत्पन्न होती है जब (i) उत्पादन के अन्य साधनों जैसे-पूंजी, भूमि आदि की कमी होती है। (ii) श्रमिक पुराने उद्योगोंं में प्रशिक्षित होते हैं परन्तु उनके पास कोई निपुणता नहीं होती। इसलिये जिस प्रकार के श्रमिकों की आवश्यकता है वे नहीं मिलते। (iii) देश का सामाजिक तथा आर्थिक ढांचा पिछड़ा हुआ होता है इसलिए श्रमिकों की पूर्ति की तुलना में रोजगार की मात्रा कम होती है। (iv) जब देश की उत्पादन विधि तथा उत्पादित वस्तुओं की प्रकृति में परिवर्तन होता है। (v) कुछ उद्योग बंद हो जाते हैं। भारत जैसे अल्पविकसित देश में इसी प्रकार की बेरोजगारी पाई जाती है। यह बेरोजगारी दीर्घकालीन होती है। इसका मुख्य कारण देश की अर्थव्यवस्था का अल्पविकसित ढांचा है।
(e)चक्रीय बेरोजगारी-
‘‘चक्रीय बेरोजगारी वह बेरोजगारी है जो सामान्यतया अर्थव्यवस्था की मन्दी की अवस्था के कारण उत्पन्न होती है। यह बेरोजगारी देश में चक्रीय परिवर्तनों अर्थात मंदी तथा तेजी के कारण उत्पन्न होती है। मंदी के दिनों में देश की प्रभावपूर्ण मांग कम हो जाती है। व्यापारियों के पास बिना बिके हुए माल के स्टॉक इकट्ठे हो जाते हैं। अत: उत्पादन की मात्रा में कमी होती है इसके फलस्वरूप रोजगार का स्तर भी कम हो जाता है तथा बेरोजगारी फैलने लगती है।
(f)मौसमी बेरोजगारी-
‘‘मौसमी बेरोजगारी वह बेरोजगारी है जो इस कारण उत्पन्न होती है कि कुछ व्यवसायों में श्रमिक की मांग वर्ष के कुछ समय के लिए होती है। इस प्रकार की बेरोजगारी में लोग वर्ष के कुछ विशेष मौसम में बेरोजगार रहते हैं परन्तु बाकी समय उन्हें रोजगार मिलता रहता है। अधिकतर कृषि क्षेत्रा के कई कारणों से एक फसल उत्पन्न होती है। इसलिए कृषक, वर्ष के बाकी महीनों में बेरोजगार रहते हैं। चीनी के कारखानों, बर्फ बनाने के कारखानों तथा इसी प्रकार के कई उद्योग मौसमी होती हैं। इन उद्योगों में काम करने वाले मजदूर मौसमी बेरोजगार होते हैं।
(g)तकनीकी बेरोजगारी-
‘‘तकनीकी बेरोजगारी वह बेरोजगारी है जो तकनीकी परिवर्तनों के कारण उत्पन्न होती है।’’ यह बेरोजगारी तकनीकी परिवर्तनों के कारण उत्पन्न होती है। आधुनिक तकनीकी ‘‘पूंजी प्रधान’’ है। इसके फलस्वरूप श्रम का स्थान मशीनें ले रही हैं। स्वचलित मशीनों के कारण यह प्रक्रिया और भी तेज हो गई है। तकनीकी परिवर्तनों के कारण श्रमिकों की भारी संख्या में छंटनी की जाती है। इसके फलस्वरूप बेरोजगारी बढ़ जाती है।
(h)खुली बेरोजगारी-
इस प्रकार की बेरोजगारी में श्रमिक के पास कोई काम नहीं होता है। उसे थोड़ा बहुत काम भी नहीं मिलता। काम के अभाव में श्रमिक पूरी तरह बेकार रहते हैं। इस प्रकार की बेरोजगारी अधिकतर शहरी क्षेत्रों में औद्योगिक बेरोजगारी तथा शिक्षित बेरोजगारी के रूप में पाई जाती है।
(I) छिपी बेरोजगारी-
अर्थशास्त्र में छिपी बेरोजगारी शब्द का प्रयोग सबसे पहले श्रीमती जोन रॉबिन्सन ने किया था। उनके अनुसार, छिपी बेरोजगारी वह अवस्था है जिसमें श्रमिक को अपनी योग्यता से कम उत्पादक कार्यों में काम करना पड़ता है। छिपी बेरोजगारी के बारे में श्रीमती रोबिन्सन की परिभाषा को विकसित देशों में लागू किया जाता है। अल्प विकसित देशों में छिपी बेरोजगारी का मतलब है, ‘‘ऐसी स्थिति जिसमें जितने श्रमिक काम पर लगे हुए हैं उनसे कम ही आवश्यकता होती है अर्थात जब किसी काम पर जितने श्रमिकों की वास्तव में आवश्यकता होती है। उससे अधिक लोग काम पर लगे हुए हों तो इन लोगों की बेरोजगारी को छिपी हुई बेरोजगारी कहा जाता है।’’