2. नाना साहब से मनू का क्या सम्बन्ध था?
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बिठूर के नाना की, मुंहबोली बहन छबीली थी, लक्ष्मीबाई नाम, पिता की वह संतान अकेली थी। नाना के संग पढ़ती थी वह, नाना के सँग खेली थी, बरछी ढाल, कृपाण, कटारी उसकी यही सहेली थी। वीर शिवाजी की गाथायें उसकी याद ज़बानी थी, बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी, खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी। यह पंक्तियां आज भी लोगों बिठूर की गर गली-कूचे में सुनी जा सकती हैं। इस दुनिया को छोड़ने से पहले उन्होंने एक क्रांति की अलख जगाई तो जो 1947 तक जारी रहे। लक्ष्मी बाई की बचपन बिठूर स्थित नानाराव पेशवा के महल में गुजरा। यहीं पर उन्होंने घुड़सवारी से लेकर तलवारबाजी सीखी। तात्या टोपे से लेकर अली तक ने उन्हें रणबाजी के गुर सिखाए। रानी अपनी सजेली मैना के साथ सावन माह में जागेश्वर मंदिर आती और भगवान शिव की पूजा अर्चना करती थीं। बगल में बले अखाड़े में हाथ आजाम कर वो चली जाया करती थीं।
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