2) 'नर की अरु नल नीर की.... दोहे का अर्थ अपने शब्दों में लिखिए।
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नर की अरु नल-नीर की, गति एकै कर जोइ। जेतो नीचो ह्वै चले, तेतो ऊँचो होइ।। नर अर्थात मनुष्य और नल-नीर (नल का पानी) दोनों की गति (अंजाम ) एक ही होती है। ... इसी प्रकार मनुष्य जो विनम्रता में जितना नीचे होता (झुकता) चला जाता है वो उतना ही उँचा हो जाता है अर्थात महानता को प्राप्त हो जाता है।
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इस दोहे मे बिहारी जी यह कहना चाहते है कि नर यानि मनुष्य और नल नीर की गति नीचे होनी चाहिऐ। यहा नर यानि मनुष्य के लिए नीचे का अर्थ विनम्रता। बिहारी जी का कहना है की मनुष्य और नल के नीर / पानी जितना ही नीचे गिरता है पुनह् उतना ही अधिक ऊपर उठता है ।
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