2 नवाब साहब ने बहुत करीने से खीरे की फांखों पर जीरा मिला नमक और लाल मिर्च की सुर्खी बुरक दी उनकी प्रत्येक भाव भंगिमा और जबड़ों के स्फुरण से स्पष्ट था कि उस प्रक्रिया में उनका मुख खीरे के रसास्वादन की कल्पना से प्लावित हो रहा था। हम कनखियों से देख कर सोच रहे थे मियां रईस बनते हैं • लेकिन लोगों की नजरों से बचने के ख्याल में अपनी असलियत पर उतर आए हैं क) प्रस्तुत गद्यांश किस पाठ से उद्धृत है ? इसके लेखक का नाम भी बताइए ।
ख) नवाब साहब की असलियत का वर्णन कीजिए।
ग) नवाब साहब के भाव भंगिमा से क्या स्पष्ट था?
घ) नवाब साहब को कनखियों से कौन देख रहे थे? इ) रसास्वादन का संधि विच्छेद कीजिए।
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पाठ का नाम = लखनवी अंदाज़ ।
लेखक का नाम = यशपाल ।
ख) नवाब साहब खीरे के स्वाद के आनंद में डूबे हुए थे उनकी खुशबू से आनंदित होकर उन्होंने अपनी आंखें मूंद ली थी वह चाह कर भी खीरा नहीं खा पा रहे थे ।
क्योंकि वह नहीं चाहते थे कि कोई सफेदपोश व्यक्ति उन्हें खीरे जैसी सामान्य वस्तु खाते देखे ।
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