2.पानी की माया और काया क्या है ?
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पानी ही हमारा जीवन है। पंचतत्व में से एक पानी से ही जीवन की परिकलन हुई। जल प्रलय की बात हर संस्कृति के मूल में मिलती है, वहीं से सजीव के सृजन की भी बात शुरू होती है, यानी पानी ही सर्वोपरि है। तभी तो हमारे मालवा में कहावत है - ‘जल की काया, जल की माया, जल का सकल पसारा, जल से कौन है न्यारा रे।’ पृथ्वी हो या हमारा शरीर, इसमें तीन हिस्से तो जल ही है। दरअसल, पानी, सिर्फ पानी नहीं है। इसकी शुद्धता को कायम रखना भी हमारी संस्कृति है। पानी की शुद्धता का ख्याल हर घर मे रखा जाता है। मुझे याद आता है कि मेरी दादी-नानी कई किलोमीटर से सिर पर सँजोकर पानी के घड़े लाती थीं। वह पीने के पानी के घड़े को रसोईघर में रखती थीं। वहां हर रोज इसकी पूजा होती थी। उस मटके को कोई बिना हाथ धोए छू नहीं सकता था। इतना ही नहीं, जब भी कोई पूजा होती है या कोई कुआं खोदा जाता है, तब जल देवी का आवाहन करने की परंपरा है।