2)प्राचीन भारतीय इतिहास के पुनर्निर्माण के लिए मुख्य पुरातात्विक
स्रोतों पर चर्चा करें।
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पुरातात्विक स्त्रोत का सम्बन्ध प्राचीन अभिलेखों, सिक्कों, स्मारकों, भवनों, मूर्तियों तथा चित्रकला से है, यह साधन काफी विश्वसनीय हैं। इन स्त्रोतों की सहायता से प्राचीन काल की विभिन्न मानवीय गतिविधियों की काफी सटीक जानकारी मिलती है। इन स्त्रोतों से किसी समय विशेष में मौजूद लोगों के रहन-सहन, कला, जीवन शैली व अर्थव्यवस्था इत्यादि का ज्ञान होता है। इनमे से अधिकतर स्त्रोतों का वैज्ञानिक सत्यापन किया जा सकता है। इस प्रकार के प्राचीन स्त्रोतों का अध्ययन करने वाले अन्वेषकों को पुरातत्वविद कहा जाता है।
अभिलेख (Inscriptions)
भारतीय इतिहास के सम्बन्ध में अभिलेखों का स्थान अति महत्वपूर्ण है, भारतीय इतिहास के बारे में प्राचीन काल के कई शासकों के अभिलेखों से काफी महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त हुई है। यह अभिलेख पत्थर, स्तम्भ, धातु की पट्टी तथा मिट्टी की वस्तुओं पर उकेरे हुए प्राप्त हुए हैं। इन प्राचीन अभिलेखों के अध्ययन को पुरालेखशास्त्र कहा जाता है, जबकि इन अभिलेखों की लिपि के अध्ययन को पुरालिपिशास्त्र कहा जाता है। जबकि अभिलेखों के अधययन को Epigraphy कहा जाता है। अभिलेखों का उपयोग शासकों द्वारा आमतौर पर अपने आदेशों का प्रसार करने के लिए करते थे।
यह अभिलेख आमतौर पर ठोस सतह वाले स्थानों अथवा वस्तुओं पर मिलते हैं, लम्बे समय तक अमिट्य बनाने के लिए इन्हें ठोस सतहों पर लिखा जाता है। इस प्रकार के अभिलेख मंदिर की दीवारों, स्तंभों, स्तूपों, मुहरों तथा ताम्रपत्रों इत्यादि पर प्राप्त होते हैं। यह अभिलेख अलग-अलग भाषाओँ में लिखे गए हैं, इनमे से प्रमुख भाषाएँ संस्कृत, पाली और संस्कृत हैं, दक्षिण भारत की भी कई भाषाओँ में काफी अभिलेख प्राप्त हुए हैं।
भारत के इतिहास के सम्बन्ध में सबसे प्राचीन अभिलेख सिन्धु घाटी सभ्यता से प्राप्त हुए हैं, यह अभिलेख औसतन 2500 ईसा पूर्व के समयकाल के हैं। सिन्धु घाटी सभ्यता की लिपि अभी तक डिकोड न किया जाने के कारण अभी तक इन अभिलेखों का सार अभी तक ज्ञात नहीं हो सका है। सिन्धु घाटी सभ्यता की लिपि में प्रतीक चिन्हों का उपयोग किया गया है, और अभी तक इस लिपि का डिकोड नहीं किया जा सका है।
पश्चिम एशिया अथवा एशिया माइनर के बोंगज़कोई नामक स्थान से भी काफी प्राचीन अभिलेख प्राप्त हुए हैं, हालांकि यह अभिलेख सिन्धु घाटी सभ्यता के जितने पुराने नहीं है।बोंगज़कोई से प्राप्त अभिलेख लगभग 1400 ईसा पूर्व के समयकाल के हैं। इन अभिलेखों की विशेष बात यह है कि इन अभिलेखों में वैदिक देवताओं इंद्र, मित्र, वरुण तथा नासत्य का उल्लेख मिलता है। ईरान से भी प्राचीन अभिलेख नक्श-ए-रुस्तम प्राप्त हुए हैं, इन अभिलेखों में प्राचीन काल में भारत और पश्चिम एशिया के सम्बन्ध में वर्णन मिलता है। भारत के प्राचीन इतिहास के अधययन में यह अभिलेख अति महत्वपूर्ण हैं, इनसे प्राचीन भारत की अर्थव्यवस्था, व्यापार इत्यादि के सम्बन्ध में पता चलता है।
ईरान में कस्साइट अभिलेख प्राप्त हुए हैं, जबकि सीरिया के मितन्नी अभिलेख में आर्य नामों का वर्णन किया गया है। मौर्य सम्राट अशोक ने अपने शासनकाल में काफी अभिलेख स्थापित किये। ब्रिटिश पुरातत्वविद जेम्स प्रिन्सेप ने सबसे पहले 1837 में अशोक के अभिलेखों को डिकोड किया। यह अभिलेख सम्राट अशोक द्वारा ब्राह्मी लिपि में उत्कीर्ण करवाए गए थे। अभिलेख उत्कीर्ण करवाने का मुख्य उद्देश्य शासकों द्वारा अपने आदेश को जन-सामान्य तक पहुँचाने के लिए किया जाता था।
सम्राट अशोक के अतिरिक्त अन्य शासकों ने भी अभिलेख उत्कीर्ण करवाए, यह अभिलेख सम्राट द्वारा किसी क्षेत्र पर विजय अथवा अन्य महत्वपूर्ण अवसर पर उत्कीर्ण करवाए जाते थे। प्राचीन भारत के सम्बन्ध कुछ महत्वपूर्ण अभिलेख इस प्रकार हैं – ओडिशा के खारवेल में हाथीगुम्फा अभिलेख, रूद्रदमन द्वरा उत्कीर्ण किया गया जूनागढ़ अभिलेख, सातवाहन शासक गौतमीपुत्र शातकर्णी का नासिक में गुफा में उत्कीर्ण किया गया अभिलेख, समुद्रगुप्त का प्रयागस्तम्भ अभिलेख, स्कंदगुप्त का जूनागढ़ अभिलेख, यशोवर्मन का मंदसौर अभिलेख, पुलकेशिन द्वितीय का ऐहोल अभिलेख, प्रतिहार सम्राट भोज का ग्वालियर अभिलेख तथा विजयसेन का देवपाड़ा अभिलेख।
अधिकतर प्राचीन अभिलेखों में प्राकृत भाषा का उपयोग किया गया है, अभिलेख सामान्यतः उस समय की प्रचलित भाषा में खुदवाए जाते थे। कई अभिलेखों में संस्कृत भाषा में भी सन्देश उत्कीर्ण किये गए हैं। संस्कृत का उपयोग अभिलेखों में ईसा की दूसरी शताब्दी में दृश्यमान होता है, संस्कृत अभिलेख का प्रथम प्रमाण जूनागढ़ अभिलेख से मिलता है, यह अभिलेख संस्कृत भाषा में लिखा गया था। जूनागढ़ अभिलेख 150 ईसवी में शक सम्राट रूद्रदमन द्वारा उत्कीर्ण करवाया गया था। रूद्रदमन का शासन काल 135 ईसवी से 150 ईसवी के बीच था।
सिक्के (Coins)
प्राचीन काल में लेन-देन के लिए उपयोग की जाने वाली वस्तु विनिमय व्यवस्था (Barter System) के बाद सिक्के प्रचलन में आये। यह सिक्के विभिन्न धातुओं जैसे सोना तांबा, चाँदी इत्यादि से निर्मित किये जाते थे। प्राचीन भारतीय सिक्कों की एक विशिष्टता यह है कि इनमे अभिलेख नहीं पाए गए हैं। आमतौर प्राचीन सिक्कों पर चिह्न पाए गए हैं। इस प्रकार से सिक्कों को आहत सिक्के कहा जाता है। इन सिक्कों का सम्बन्ध ईसा से पहले 5वीं सदी से है। उसके पश्चात् सिक्कों में थोडा बदलाव आया, इन सिक्कों में तिथियाँ, राजा तथा देवताओं के चित्र अंकित किये जाने लगे। आहत सिक्कों के सबसे प्राचीन भंडार पूर्वी उत्तर प्रदेश तथा मगध से प्राप्त हुए हैं। भारत में स्वर्ण मुद्राएं सबसे पहले हिन्द-यूनानी शासकों ने जारी की, और इन शासकों ने सिक्कों के निर्माण में “डाई विधि” का उपयोग किया। कुषाण शासकों द्वारा जारी की गयी स्वर्ण मुद्राएं सबसे अधिक शुद्ध थी। जबकि गुप्त शासकों द्वारा सबसे ज्यादा मात्र में स्वर्ण मुद्राएं जारी की। सातवाहन शासकों ने सीसे की मुद्राएं जारी की।