2. प्रस्तुत श्लोकस्य संप्रंसग व्याख्या कुरूता?
उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्यणि न मनोरथेः।
न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगाः।।
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उद्यमी सिद्धांत रूप में काम करने का इरादा नहीं रखते थे।
न ही सुप्त शेरनी प्रविशांति मुखे मृग।
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