2. ‘प्रवाद-पर्व' कविता की मूल संवेदना का रेखांकन कीजिए।
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Answer:
निरन्तर युद्ध की समस्या और राज्य-व्यवस्था के क्रमश: अकूत शक्ति-सपन्न होते जाने के आसन्न संकटों पर 'संशय की एक रात' तथा 'महाप्रस्थान' नामक काव्यों के प्रणयन के उपरान्त श्री नरेश मेहता ने अपने इस नये काव्य में व्यक्ति और प्रशासक या लोक बनाम राजतंत्र की समस्या पर प्रश्न-चिह्न लगाया है।
Answer:
प्रवाद पर्व सप्तक कवि श्रीनरेश मेहता की कहानी पर आधारित एक कविता है। 'संशय की एक रात' और 'महाप्रस्थान' की तरह इस कविता की कहानी भी बहुत दुर्लभ है, लेकिन वैचारिक और भावनात्मक ढाल बहुत घनी है।
इसमें कवि ने शुद्ध वास्तविकता की खोज नहीं की है, क्योंकि कवि के अनुसार - 'कविता भी अपने सभी अस्तित्व, पहचान, जीवन शक्ति और उद्देश्य को खो देती है जब वह केवल यथार्थवादी हो जाती है।
सत्य को धर्म और दर्शन प्रदान करके ही कविता अपनी काव्य यात्रा की शुरुआत कर सकती है।
इसमें कवि ने वास्तविकता की बजाय लोक पक्ष की नींव को मजबूत करने और समाजवादी दर्शन को जीवन में उतारने पर जोर दिया है।
सीता जी के लंका में रहने के संदर्भ में एक धोबी हाट दोष देता है। सरे आम इस तरह कीचड़ उछालना विद्वेषपूर्ण कार्य है, लक्ष्मण का भी यही मत है।
राम अलग तरह से सोचते हैं: अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सभी के लिए है। धोबी को दंडित नहीं किया जा सकता।
अगर यही दोष किसी अनाथ असहाय महिला पर लगाया जाता तो क्या वह (लक्ष्मण) न्याय के लिए अदालत में आते? उन्हें व्यक्तिगत प्रेम और मोह को त्यागकर सीता को निर्वासित करना पड़ता है।
#SPJ3