2. पल्लव और दक्षिण भारतीय राजनीति में स्थानीय संघों की प्रकृति और भूमिका क्या थी?
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Answers
पल्लव राजवंश कुछ विद्वानों ने पल्लवों की उत्पत्ति पार्थियन लोगों से बतलाई है। किन्तु पल्लव और पह्लव नामों का ध्वनिसाम्य दोनों का तादात्म्य सिद्ध करने के लिए पर्याप्त नहीं है। दक्षिणी भारत में पह्लवों को उत्तरापथ में और पल्लवों को दक्षिणापथ में रहनेवाला कहकर दोनों में स्पष्ट अnतर दिखलाया है। पल्लव शब्द मूलतः तमिल 'तोंडेयर' और 'तोंडमान' का संस्कृत रूप था। पल्लवों की तमिल उत्पत्ति माननेवाले विद्वान् पल्लवों का तिरैयर से समीकरण बतलाते हैं। एक विद्वान् ने तो पल्लव शब्द को ही, दूध दुहनेवाले या ग्वाले के अर्थ में, तमिल भाषा से निकला सिद्ध करने का असफल प्रयत्न किया है। मणिमेखलै के आधार पर प्रथम पल्लव नरेश को एक चोल और एक नाग राजकन्या की सतति मानने का भी सुझाव रखा गया है। पल्लव नामकरण नाग-राज-कन्या के जन्मदेश मणिपल्लवम् अथवा प्रथम पल्लव के तोंडै लता की शाखा की गेंडुरी से बँधा हुआ पाए जाने के कारण बतलाया जाता है।
पल्लव और दक्षिण भारतीय राजनीति में स्थानीय संघों की प्रकृति और भूमिका
Explanation:
- पल्लव काल महत्वपूर्ण है क्योंकि यह आर्य संस्कृति को आत्मसात करने की एक क्रमिक प्रक्रिया थी। तमिल व्यक्तित्व का उद्भव।
- वास्तुकला का काम पल्लव राजवंश में किया गया है और यह इसके लिए अच्छी तरह से जाना जाता है। ममल्लापुरम में स्थित शोर मंदिर, पल्लव वंश के स्थापत्य संरक्षण का बेहतरीन उदाहरण है।
- पल्लव वंश ने पल्लव लिपि भी बनाई, जहाँ से अंत में अवतरण अनुदान प्राप्त हुआ।
- कई अन्य दक्षिण-पूर्वी एशियाई लिपियाँ भी पल्लव वंश से बनी हैं।
- पल्लव शासन के दौरान चीनी यात्री Xuanzang अपने मित्रवत शासन का महिमामंडन करने के लिए कांचीपुरम गए।
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राजनीति तथा राजनीति विज्ञान में अन्तर बताइए।
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