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राम मैं पूजा कहाँ चढ़ाऊँ । फल अरु मूल अनूप न पाऊँ ।।
थनहर दूध जो बछरू जुठारी । पुहुप भँवर जल मीन बिगारी ।।
मलयागिरी बेधियो भुअंगा । विष अमृत
अमृत दोऊ एकै संगा ।।
मन ही पूजा मन ही धूप । मन ही सेऊँ सहज सरूप ।।
पूजा अरचा न जानूँ तेरी । कह रैदास कवन गति मेरी ।।
इसका अर्थ बताए।
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Answer:
राम मैं पूजा कहा चढ़ाऊँ ।
फल अरु फूल अनूप न पाऊँ ॥टेक॥
थन तर दूध जो बछरू जुठारी ।
पुहुप भँवर जल मीन बिगारी ॥१॥
मलयागिर बेधियो भुअंगा ।
विष अमृत दोउ एक संगा ॥२॥
मन ही पूजा मन ही धूप ।
मन ही सेऊँ सहज सरूप ॥३॥
पूजा अरचा न जानूँ तेरी ।
कह रैदास कवन गति मोरी ॥४॥
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Answer:
राम मैं पूजा कहा चढ़ाऊँ ।
फल अरु फूल अनूप न पाऊँ ॥टेक॥
थन तर दूध जो बछरू जुठारी ।
पुहुप भँवर जल मीन बिगारी ॥१॥
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