2. रस के अंतर्गत स्थायी भाव, विभाव से किस प्रकार
भिन्न होता है। उदाहरण देकर समझाकर लिखिए।
3. राष्ट्रभाषा होने के लिए उसमें कौन-कौन सी
विशेषताएँ लिखिए।
4. "सेवा परमो धर्म"' इस विषय पर अपने विचार
लिखिए।
5. "गौरा' पाठ के किस अंश ने आपको सर्वाधिक
प्रभावित किया ? लिखिए।
Answers
2. रस के अंतर्गत स्थायी भाव, विभाव से किस प्रकार भिन्न होता है। उदाहरण देकर समझाकर लिखिए।
➲ रस के अंतर्गत स्थाई भाव विभाव से इस प्रकार भिन्न होता है...
स्थाई भाव रस का सबसे प्रमुख और प्रथम अंग होता है और किसी भी रस का स्थाई भाव रस का मूल तत्व होता है, बिना स्थाई भाव के किसी भी रस की अनुभूति नहीं की जा सकती। स्थाई भाव दस प्रकार का होता है, क्योंकि हर रस का एक स्थाई भाव है।
विभाव रस का दूसरा और अनिवार्य अंग है, लेकिन यह स्थाई भाव आस्वाद योग्य बनाने वाले कारण उत्पन्न करता है। विभाव दो प्रकार का होता है...
आलंबन विभाव और उद्दीपन विभाव।
उदाहरण के लिए किसी श्रृंगार रस की कविता में नायक-नायिका के मिलन-विरह आदि का वर्णन किया जाता है और रति नामक स्थाई भाव की अनुभूति होती है, लेकिन इस स्थाई भाव को अनुभूत कराने के लिए विभाव का कार्य जैसे चांदनी रात, बाग-बगीचे, सरोवर, सुंदर विहार, प्राकृतिक दृश्य, नायिका सौंदर्यीकरण आदि जैसे मनमोहक वातावरण वाले तत्व विभाव का कार्य करते हैं।
3. राष्ट्रभाषा होने के लिए उसमें कौन-कौन सी विशेषताएँ लिखिए।
➲ राष्ट्रभाषा होने के लिए किसी भाषा को देश की बहुसंख्यक लोगों की भाषा होनी चाहिए। राष्ट्र भाषा की लिपि और व्याकरण सब वैज्ञानिक दृष्टि से परख होना चाहिए। राष्ट्रभाषा में पर्याप्त साहित्य आदि होना चाहिए।
4. "सेवा परमो धर्म"' इस विषय पर अपने विचार लिखिए।
➲ ‘सेवा परमो धर्म’ से तात्पर्य उच्च विचार और संस्कृति से है, जिसमें मानवता को सर्वोपरि मानकर सेवा भाव को अपना प्रथम कर्तव्य मान लिया जाए। राष्ट्र की सेवा करना, अपने माता-पिता की सेवा करना, गुरु-जन की सेवा करना, असहाय निर्धन गरीबों की सेवा करना, जरूरतमंदों की सेवा करना, निरीह प्राणियों की सेवा करना यह सारे कार्य ‘सेवा परमो धर्म’ वाक्य के अंदर निहित हो जाते हैं। जो सेवा को अपना परम धर्म मान कर अपना मान लेता है, उसका जीवन सफल हो जाता है, ये कार्य ही उसकी आत्म संतुष्टि का आधार हो जाता है।
5. "गौरा' पाठ के किस अंश ने आपको सर्वाधिक प्रभावित किया ? लिखिए।
➲ ‘गौरा’ पाठ के उस अंश को हमने सर्वाधिक प्रभावित किया, जब गौरा अपनी मृत्यु से संघर्ष करते हुए यातना भरे दिन बिताती है। गौरा धीरे-धीरे वेदना को सहते हुए मौत के मुँह में जा रही होती है और सब उसे असहाय देखते रहते हैं, कोई कुछ नहीं कर पाता। गौरा को असमय मौत के मुँह में जाने वाला अंश पाठ का यह सबसे अधिक मार्मिक एवं संवेदनशील अंश है।
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