2. "रसरी आवत जात तै, सिल पर परत निसान।" इस कथन की सार्थकता पर 30 से 35 शब्दों में उदाहरण सहित लिखिए
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Answer:
करत-करत अभ्यास के जडमति होत सुजान ।
रसरी आवत-जात ते सिल पर परत निशान ॥ ”
दोहे का शाब्दिक अनुवाद :
बार बार अभ्यास/अनुशीलन/आवृत्ती करने से मूर्ख भी पंडित होता है. रस्सी के आते- जाते घिसने से पत्थर भी पर निशान बन जाता है
कुंए की जगत के पत्थर पर बार बार रस्सी के आने-जाने की रगड से निशान बन जाते हैं, उसी प्रकार लगातार अभ्यास से अल्पबुद्धि/जडमति भी बुद्धिमान/ सुजान बन सकता है।
यह दोहा कवि वृन्द जी की ‘वृंद-सतसई' से है. ‘वृंद-सतसई मे सात सौ दोहे नीती कि शिक्षा -उपदेश सरल भाषामे समझाते है.
एक उदाहरण कथा है . हताश जडमती विद्यार्थी बरधराज याने - बैल बुद्धी -आश्रम छोडने के इरादेसे बाहर निकलता है . आश्रम के बाहर कुंए के पत्थर पर नरम रस्सी से पडे निशान देखकर समझ जाता है की ढीठ पत्थर पर भी घिस- घिस कर निशान बनाया जा सकता है . और वह निश्चय कर आश्रम लौट जाता है. और खूब डटकर विद्या अभ्यास करता है. यही "बरधराज" आगे चलकर व्याकरण शास्त्र का प्रकांड पंडित बन जाता है. संस्कृत व्याकरण का अद्भुत ग्रंथ “लघु सिद्धान्त कौमुदी” ग्रन्थ लिखता है और "वरदराज" नामसे विख्यात हो जाता है.