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स्टिंग ऑपरेशनर बोनी पत्रकारिता का स्वावपूर्ण
अंग है, पर इसका जी जीवन मंटरवन
बढ़ता जा रहा हैइस बषय पर अपना
हाष्टकोण व्यक्त करते
किसी समाचार
पत्र के संपादक को पत्र लिखिए
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कोबरापोस्ट की ओर से किए गए दो दर्जन से अधिक राष्ट्रीय और क्षेत्रीय मीडिया हाउस के ‘स्टिंग ऑपरेशन’ पर मीडिया उद्योग की ओर से कई तरह की प्रतिक्रियाएं आ रही हैं. कोई चुप्पी साधे हुए है, तो कोई क़ानूनी कार्रवाई की धमकी दे रहा है तो कोई किसी भी तरह के गलत काम में संलिप्त होने से सीधा इनकार कर रहा है.
टाइम्स समूह की ओर से तो यहां तक भी दावा किया गया है कि उसके बड़े अधिकारी जो कैमरे के सामने आपत्तिजनक बयान देते हुए देखे जा रहे हैं दरअसल ‘रिवर्स स्टिंग’ कर रहे थे और कोबरापोस्ट के अंडरकवर रिपोर्टर को अपनी बातों में ‘फंसा’ रहे थे.
इस स्टिंग में फंसी कोई भी मीडिया संस्था ये बात मानने को तैयार नहीं है कि वे जिस तरह से अपना व्यवसाय चला रहे हैं, उसमें कुछ भी गलत नहीं है. उनकी इस हिचक की वजह तो समझी जा सकती है लेकिन देश के दूसरे मीडिया संस्थानों की चुप्पी समझ से परे है.
कुछ मीडिया मालिकों ने स्टिंग ऑपरेशन की नैतिकता को लेकर सवाल खड़े किए हैं और कहा है कि उनके संस्थानों में इसकी इजाज़त नहीं है. नियम के मुताबिक पत्रकारों को किसी स्टोरी के कवरेज के दौरान अपनी ग़लत पहचान नहीं बतानी चाहिए. इस नियम में कभी-कभार थोड़ी-बहुत छूट ली जाती है लेकिन स्टिंग में तो सब कुछ पूरी तरह से गलत पहचान पर ही टिका होता है.
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