2. स्वामी दयानंद के प्रज्ञाचक्षु गुरु कौन थे ?
Answers
Answer:
मनमोहन कुमार आर्य
स्वामी दयानन्द जी देश भर घूमकर वेदों का प्रचार करते थे। वेद प्रचार के अन्तर्गत वह ईश्वर की स्तुति, प्रार्थना व उपासना का प्रचार करते हुए वेद विरुद्ध मूर्तिपूजा का खण्डन भी करते थे। मूर्तिपूजा से जुड़ा हम उनका एक संस्मरण प्रस्तुत कर रहे हैं जिसमें उन्होंने बताया है कि उन्हें मूर्तिपूजा की प्रेरणा अपने गुरु प्रज्ञाचक्षु स्वामी विरजानन्द सरस्वती से मिली थी। प्रकरण इस प्रकार है कि सन् 1879 में हरिद्वार में होने वाले कुम्भ के मेले पर एक दिन मूला मिस्त्री, सब ओवरसियर, नहर गंगा ने स्वामी जी से पूछा कि आपने मूर्तिपूजा के खण्डन की बात क्यों और कैसे उठाई?
स्वामी दयानन्द जी ने इसका उत्तर दिया कि मेरा प्रथम से ही यह विचार था कि मूर्तिपूजा केवल अविद्या अन्धकार से है। इसके अतिरिक्त मेरे गुरु परमहंस श्री स्वामी विरजानन्द सरस्वती जी महाराज बैठे-बैठे मूर्तिपूजा का खण्डन किया करते थे क्योंकि वह आंखों से लाचार थे। वह कहते थे कि कोई हमारा शिष्य ऐसा भी हो जो इस अन्धकार को देश से हटा दे। इसलिए मुझे इस देश पर दया आई और इसलिए मैंने यह बीड़ा उठाया है। यह बता दें कि यह घटना पं. लेखराम कृत ऋषि दयानन्द जी के जीवन चरित में दी गई है।
mark me as brain list!!!!!
Explanation:
श्रीरामकृष्ण स्वामी विवेकानंद के गुरु थे। जब स्वामी विवेकानंद छोटे थे, तब उनका नाम नरेन था। जैसे ही उनका उम्र बढ़ता गया, तब उनके मन में बहुत सारे प्रश्न उठने लगे, साथ ही साथ वो बहुत चिंताशील हो गए। उसी समय उन्होंने श्रीरामकृष्ण को देखा। श्रीरामकृष्ण नरेन के मन में उठने वाले सभी प्रश्नों का उत्तर दे दिया। श्रीरामकृष्ण ने नरेन को समझादिया कि पृथ्वी मे सभी धर्म एक समान है। मानव का सेवा ही ईश्वर/भगवान का असली पूजा होता है।