2) समाज अपने दुख, सुख, रोमांच, भय, युद्ध आदि को परदे पर क्यों देखना चाहता है? इसके क्या
मनोविज्ञान हो सकता हैं?
अपने विचार बताए ।
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कर्ता-प्रेक्षक प्रभाव (Actor-observer effect) : स्वयं अपने अनुभव या व्यवहार के लिए (कर्ता) और दूसरे व्यक्ति (प्रेक्षक) के उसी अनुभव या व्यवहार के लिए अलग-अलग गुणारोपण करने की प्रवृत्ति।
अनुकूलन (Adaptation) : संरचनात्मक या प्रकार्यात्मक परिवर्तन जो किसी जीव के उत्तरजीविता मूल्य में वृद्धि करता है।
आक्रमण (Aggression) : शशरीरिक या शाब्दिक तौर पर किसी को चोट पहुँचाने के आशय से किया गया व्यवहार।
वायु प्रदूषण (Air pollution) : वायु की गुणवत्ता का निम्नीकरण।
सचेत प्रतिक्रिया (Alarm reaction) : सामान्य अनुकूलन संलक्षण की पहली अवस्था जिसमें अधिवृक्कीय और अनुकंपी क्रिया के जरिए उर्जा के सक्रियण द्वारा आपाती प्रतिक्रिया होती है।
विसंबंधन (Alienation) : किसी समाज या समूह का अंग न होने की भावना।
गुदीय अवस्था (Anal stage) : फ्रायड द्वारा वर्णित मनोलैंगिक अवस्थाओं में दूसरी, जो शिशु के दूसरे वर्ष में घटित होती है। इसमें सुख की प्रतीति गुदा पर और मल के बतिधारण और निष्कासन पर केंद्रित रहती है।
क्षुधा-अभाव (Anorexia nervosa) : ऐसा विकार जिसमें शशरीरिक वजन में अत्यधिक कमी निहित है और इसमें वजन बढ़ने या ‘मोटा’ होने का तीव्र भय उत्पन्न होता है।
सामाजिक मनोविज्ञान (Social Psychology) मनोविज्ञान की वह शाखा है, जिसके अन्तर्गत इस तथ्य का वैज्ञानिक अध्ययन किया जाता है कि किसी दूसरे व्यक्ति की वास्तविक, काल्पनिक, अथवा प्रच्छन्न उपस्थिति हमारे विचार, संवेग, अथवा व्यवहार को किस प्रकार से प्रभावित करती है।[1]। यहाँ 'वैज्ञानिक' का अर्थ है 'अनुभवजन्य विधि'। इस सन्दर्भ मे विचार, भावना तथा व्यवहार मनोविज्ञान के उन चरों (वैरिएबल्स) से सम्बन्ध रखते हैं जो नापने योग्य हैं। udeshya likho
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OK bro
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