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शिक्षण द्वारा उन्होंने बाहर से कुछ नहीं लिया था। सचमुच उनमें तो आर्य आदर्श को शोभा देने वाले
कौटुम्बिक सदगुण ही थे। असाधारण मौका मिलते ही और उतनी ही असाधारण कसौटी आ पड़ते ही
उन्होंने स्वभावसिद्ध कौटुम्बिक सदगुण व्यापक किए और उनके जोरों हर समय जीवनसिद्धि हासिल की।
सूक्ष्म प्रमाण में या छोटे पैमाने पर जो शुद्ध साधना की जाती है, उसका तेज इतना लोकोत्तरी होता है कि
चाहे कितना ही बड़ा प्रसंग आ पड़े, या व्यापक प्रमाण में कसौटी हो, चारित्र्यवान् मनुष्य को अपनी शक्ति
का सिर्फ गुणाकार ही करने का होता है।
(अ) उपर्युक्त गद्यांश के पाठ और लेखक का नाम लिखिए।
(ब) रेखांकित वाक्यों की व्याख्या कीजिए।
(स) काका कालेलकर के अनुसार शुद्ध साधना का तेज कैसा होता है?
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