2. शिल्प की दृष्टि से कोणार्क नाटक पर विचार कीजिए।
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कोणार्क नाटक का शिल्प की दृष्टि से विवेचन....
‘जगदीश चंद्र माथुर’ द्वारा लिखा गया “कोणार्क” नाटक भारत की स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद का सबसे महत्वपूर्ण नाटक माना जाता है। ये नाटक जगदीश चंद्र माथुर का सबसे महत्वपूर्ण नाटक है।
‘कोणार्क’ नाटक का कथानक ऐतिहासिकता से भरपूर है। ऐतिहासिक घटनाओं से भरपूर होने के बाद भी ये नाटक समसामयिक घटनाओं की पृष्ठभूमि के लिये भी आधार प्रदान करता है। नाटक के माध्यम से नाटककार का उद्देश स्पष्ट प्रकट हो रहा है। नाटककार अपने नाटक के माध्यम से केवल एक कलाकार की ललित कला अथवा करुण कथा का ही वर्णन नही कर रहा है, बल्कि इसके माध्यम से एक कलाकार का अपने स्वाभिमान हेतु संघर्ष और अत्याचार का विरोध करने ही कथा का चित्रण कर रहा है।
नाटक का कथानक संघर्षपूर्ण परिस्थितियों से भरा है। इस नाटक मे नाटककार ने इसके कथानक में तथ्यों पर कम और कल्पना तथा अनुभूति पर अधिक जोर दिया है। इस नाटक में जहाँ एक ओर व्यक्तिगत वैमनस्य के साथ सामाजिक-आर्थिक समस्या का भी चित्रण किया गया है, तो वहीं दूसरी ओर राजा नरसिंह देव के माध्यम से राजनीतिक परिस्थितियों का चित्रण किया गया है।
नाटक का कथानक तीन अंकों में विभाजित है, जहाँ प्रथम अंक में महाशिल्पी विशु का मंदिर के शिखर के ठीक से नही जम पाने के लिये चिंतन का चित्रण किया गया है। दूसरे अंक में उत्कल नरेश द्वारा विशु को दिये गये सम्मान को विशु धर्मपद को अनुशंसित करते हैं। तीसरा अंक संघर्षपूर्ण परिस्थितयों से भरा पड़ा जिसमें सभी पात्र विपरीत परिस्थितियों से जूझते हुये निकलते हैं, और अंक का समापन होता है।
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