Hindi, asked by ajmatkhan93644, 5 months ago


| 2. तैमूर ने बलकरन को अपने से भी बहादुर क्यों माना? ती

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Answered by nandhithabnair
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Answer:

तैमूर रखा तो सोशल मीडिया पर ये बड़ी बहस का विषय बन गया.

कई लोगों ने इसे दोनों का व्यक्तिगत मामला कहा तो कई लोगों ने इस बात पर एतराज़ जताया और कहा कि एक जालिम आक्रमणकारी के नाम पर बेटे का नाम रखना ग़लत है.

(सोशल मीडिया- 'करीना को तैमूर नाम पसंद कैसे आया')

आख़िर तैमूर ने भारत में ऐसा क्या किया था?

इतिहासकार मानते हैं कि चग़ताई मंगोलों के खान, 'तैमूर लंगड़े' का एक ही सपना था. वो यह कि अपने पूर्वज चंगेज़ खान की तरह ही वह पूरे यूरोप और एशिया को अपने वश में कर ले.

लेकिन चंगेज़ खान जहां पूरी दुनिया को एक ही साम्राज्य से बांधना चाहता था, तैमूर का इरादा सिर्फ़ लोगों पर धौंस जमाना था.

साथ ही साथ उसके सैनिकों को यदि लूट का कुछ माल मिल जाए तो और भी अच्छा.

चंगेज़ और तैमूर में एक बड़ा फ़र्क़ था. चंगेज़ के क़ानून में सिपाहियों को खुली लूट-पाट की मनाही थी. लेकिन तैमूर के लिए लूट और क़त्लेआम मामूली बातें थीं.

साथ ही, तैमूर हमारे लिए अपनी एक जीवनी छोड़ गया, जिससे पता चलता है कि उन तीन महीनों में क्या हुआ जब तैमूर भारत में था.

तैमूरलंग की प्रतिमा

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उज़्बेकिस्तान में लगी तैमूरलंग की प्रतिमा

विश्व विजय के चक्कर में तैमूर सन 1398 ई. में अपनी घुड़सवार सेना के साथ अफगानिस्तान पहुंचा. जब वापस जाने का समय आया तो उसने अपने सिपहसालारों से मशविरा किया.

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तैमूर का दिल्ली आक्रमण

हिंदुस्तान उन दिनों काफ़ी अमीर देश माना जाता था. हिंदुस्तान की राजधानी दिल्ली के बारे में तैमूर ने काफ़ी कुछ सुना था. यदि दिल्ली पर एक सफल हमला हो सके तो लूट में बहुत माल मिलने की उम्मीद थी.

सिपाहसालरों ने तैमूर के इस प्रस्ताव पर ना-नुकर की.

तब दिल्ली के शाह नसीरूद्दीन महमूद के पास हाथियों की एक बड़ी फ़ौज थी, कहा जाता है कि उसके सामने कोई टिक नहीं पाता था. साथ ही साथ दिल्ली की फ़ौज भी काफ़ी बड़ी थी.

तैमूर ने कहा, बस थोड़े ही दिनों की बात है अगर ज़्यादा मुश्किल पड़ी तो वापस आ जाएंगे.

मंगोलों की फ़ौज सिंधु नदी पार करके हिंदुस्तान में घुस आई.

रास्ते में उन्होंने असपंदी नाम के गांव के पास पड़ाव डाला. यहां तैमूर ने लोगों पर दहशत फैलाने के लिए सभी को लूट लिया और सारे हिंदुओं को क़त्ल का आदेश दिया.

पास ही में तुग़लकपुर में आग की पूजा करने वाले यज़दीयों की आबादी थी. आजकल हम इन्हें पारसी कहते हैं.

तैमूर कहता है कि ये लोग एक ग़लत धर्म को मानते थे इसलिए उनके सारे घर जला डाले गए और जो भी पकड़ में आया उसे मार डाला गया.

फिर फ़ौजें पानीपत की तरफ़ निकल पड़ीं. पंजाब के समाना कस्बे, असपंदी गांव में और हरियाणा के कैथल में हुए ख़ून ख़राबे की ख़बर सुन पानीपत के लोग शहर छोड़ दिल्ली की तरफ़ भाग गए और पानीपत पहुंचकर तैमूर ने शहर को तहस-नहस करने का आदेश दे दिया.

यहां भारी मात्रा में अनाज मिला, जिसे वे अपने साथ दिल्ली की तरफ़ ले गए.

रास्ते में लोनी के क़िले से राजपूतों ने तैमूर को रोकने की नाकाम कोशिश की.

अब तक तैमूर के पास कोई एक लाख हिंदू बंदी थे. दिल्ली पर चढ़ाई करने से पहले उसने इन सभी को क़त्ल करने का आदेश दिया.

यह भी हुक्म हुआ कि यदि कोई सिपाही बेक़सूरों को क़त्ल करने से हिचके तो उसे भी क़त्ल कर दिया जाए.

तैमूरलंग का मक़बरा

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समरकंद स्थित तैमूरलंग का मक़बरा

अगले दिन दिल्ली पर हमला कर नसीरूद्दीन महमूद को आसानी से हरा दिया गया. महमूद डर कर दिल्ली छोड़ जंगलों में जा छिपा.

दिल्ली में जश्न मनाते हुए मंगोलों ने कुछ औरतों को छेड़ा तो लोगों ने विरोध किया. इस पर तैमूर ने दिल्ली के सभी हिंदुओं को ढूंढ-ढूंढ कर क़त्ल करने का आदेश दिया.

चार दिन में सारा शहर ख़ून से रंग गया.

अब तैमूर दिल्ली छोड़कर उज़्बेकिस्तान की तरफ़ रवाना हुआ. रास्ते में मेरठ के किलेदार इलियास को हराकर तैमूर ने मेरठ में भी तकरीबन 30 हज़ार हिंदुओं को मारा.

यह सब करने में उसे महज़ तीन महीने लगे. इस बीच वह दिल्ली में केवल 15 दिन रहा.

(लेखक पंजाब यूनिवर्सिटी में इतिहास के प्रोफ़ेसर हैं)

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