2. त्यौहार का हमारे जीवन में महत्व व उनके संदेश पर बातचीत करते हुए दादाजी और पोती में संवाद लिखिए
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अपनी सीख अपने पास रख। अगले वर्ष तक वे अच्छी तरह लिखना-पढ़ना भी सीख लेंगी। मैं तो इसी को पूजा समझती हूँ। दादी – चल ठीक है तू अपनी पूजा करने जा, मैं अपनी पूजा के लिए मंदिर जाती हूँ।
दादी: आ गई बेटा विद्यालय से?
पोती: जी दादी जी, आ गई। दिवाली आ रही है ना तो आज जल्दी छुट्टी हो गई।
दादी: क्या वाह बेटा तो क्या सोचा है दिवाली के लिए?
बड़ी बेटी - कुछ खास नहीं दादी, जो हर छुट्टी के समय क्या है, आराम।
दादी: आराम! बेटा ये कोई आम छुट्टी नहीं दीवाली की छुट्टी है, इसमे आराम नहीं काम करते हैं।
पोती : कैसा काम दादी?
दादी: घर की साफ सफाई, मिठाई बनाना, घर सजना, पूजा के लिए लाना, आदि। तुम आज कल के बच्चों को तो त्योहरो का कोई मूल्य ही नहीं है, हमारे जमाने में तो हम सुभा उठ के मा के साथ हाथ बवते थे, और तुम हो की सोने का प्लान बनना रे हो। बेटा ये हमारी संस्कृति है, हमें इसे भूलना नहीं चाहिए बाल्की इसे आगे बढ़ाना चाहिए।
पोती: आप सही कह रही हैं दादी, अब मैं भी दिवाली की तैयारी में आप सभी की मदद करूंगी।
दादी: तुम जनता हो हम दीवाली क्यों करते हैं?
पोती: जी दादी उस दिन भगवान राम अपने वनवास पूरा करके वापस अयोध्या लौट आए।
दादी: अच्छा और आप जानते हैं कि हम दीये क्यों जलाते हैं?
पोती: नहीं दादी, मुझे इसके बारे में कोई जानकारी नहीं है।
दादी: मैं बताती हूं, अमावस्या की रात थी जब वे वापस आ रहे थे और उनकी रोशनी नहीं थी इसलिए लोगों ने उनके स्वागत के लिए दीये जलाए।
पोती: ओह, अब मुझे मिल गया, मैं अपने सभी दोस्तों को इसके बारे में बताऊंगा।
#SPJ2