Chemistry, asked by arjunsingh9979, 7 months ago

2.+थायोल+बनाने+की+विधि+गुण+एवं+उपयोग+को+समझाइये।​

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Answered by Unknown5171
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Answer:

धोबिनों में वही इस लत से अछूती थी, इसी से पासी आश्चर्य में पड़ गया; पर प्रश्न करने पर उसे उत्तर मिला कि भतीजे के नामकरण के दिन वह परिवार वालों की दावत करेगी। भाई को पता चल जाने पर वह पहले ही पी डालेगा, इसी से छिपाकर मँगाना आवश्यक है।

दूसरे दिन पासी ने छन्ने में लपेटा हुआ अद्धा देकर शेष रुपये लौटाये, तब उसने रुपयों को उसी की मुट्ठी में दबाकर अनुनय से कहा कि अभी वही रखे तो अच्छा हो। आवश्यकता पड़ने पर वह स्वयं माँग लेगी।

गाँव की सीमा पर खेलती हुई कई बालिकाओं को, उसका मैले कपड़ों की छोटी गठरी लेकर यमुना की ओर जाते-जाते ठिठकना, स्मरण है। एक गड़ेरिये के लड़के ने सन्ध्या समय उसे चुल्लू से कुछ पी-पीकर यमुना के मटमैले पानी से बार-बार कुल्ला करते और पागलों के समान हँसते देखा था।

तब मेरे मन में अज्ञातनामा संदेह उमड़ने लगा। यात्रा का प्रबंध करने के लिए तो कोई बेहोश करने वाले पेय को नहीं खरीदता। यदि इसकी आवश्यकता ही थी, तो क्या वह सहयात्री नहीं मँगा सकती थी, जिसके अस्तित्व के सम्बन्ध में गाँव भर को विश्वास है?

बिबिया को अपनी मृत माँ का अन्तिम स्मृति-चिद्द बेचकर इसे प्राप्त करने की कौन-सी नई आवश्यकता आ पड़ी? फिर बाहर जाने के लिए क्या उसके पास इतना अधिक धन था कि उसने तरकी बेचकर मिले रुपये भी छोड़ दिये।

कगार तोड़कर हिलोरें लेने वाली भदहीं यमुना मंे तो कोई धोबी कपड़े नहीं धोने जाता। वर्षा की उदारता जिन गड्ढों को भर कर पोखर-तलइया का नाम दे देती है, उन्हीं में धोबी कपड़े पछार लाते हैं। तब बिबिया ही क्यों वहाँ गई?

इस प्रकार तर्क की कड़ियाँ जोड़- तोड़कर मैं जिस निष्कर्ष पर पहुँची, उसने मुझे कँपा दिया।

आत्मघात, मनुष्य की जीवन से पराजित होने की स्वीकृति है। बिबिया-जैसे स्वभाव के व्यक्ति पराजित होने पर भी पराजय स्वीकार नहीं करते। कौन कह सकता है कि उसने सब ओर से निराश होकर अपनी अन्तिम पराजय को भूलने के लिए ही यह आयोजन नहीं किया? संसार ने उसे निर्वासित कर दिया, इसे स्वीकार करके और गरजती हुई तरंगों के सामने आँचल फैलाकर क्या वह अभिमानिनी स्थान की याचना कर सकती थी?

मैं ऐसी ही स्वभाववाली एक सम्भ्रान्त कुल की निःसन्तान, अतः उपेक्षित वधू को जानती हूँ, जो सारी रात द्रौपदीघाट पर घुटने भर पानी में खड़ी रहने पर भी डूब न सकी और ब्रह्म मुहूर्त में किसी स्नानार्थी वृद्ध के द्वारा घर पहुँचाई गई।

उसने भी बताया था कि जीवन के मोह ने उसके निश्चय को डाँवा डोल नहीं किया। ‘कुछ न कर सकी तो मर गई’ दूसरों के इसी विजयोद्गार की कल्पना ने उसके पैरों में पत्थर बाँध दिए और वह गहराई की ओर बढ़ न सकी।

फिर बिबिया तो विद्रोह की कभी राख न होने वाली ज्वाला थी। संसार ने उसे अकारण अपमानित किया और वह उसे युद्ध की चुनौती न देकर भाग खड़ी हुई, यह कल्पना-मात्र उसके आत्मघाती संकल्प को, बरसने से पहले आँधी में पड़े हुए बादल के समान कहीं-का-कहीं पहुँचा सकती थी। पर संघर्ष के लिए उसके सभी अस्त्र टूट चुके थे। मूर्छितावस्था में पहाड़-सा साहसी भी कायरता की उपाधि बिना पाये हुए ही संघर्ष से हट सकता है।

संसार ने बिबिया के अन्तर्धान होने का होने का जो कारण खोज लिया, वह संसार के ही अनुरूप है; पर मैं उसके निष्कर्ष को निष्कर्ष मानने के लिए बाध्य नहीं।

आज भी जब मेरी नाव, समुद्र का अभिनय करने में बेसुध वर्षा की हरहराती यमुना को पार करने का साहस करती है, तब मुझे वह रजक-बालिका याद आये बिना नहीं रहती। एक दिन वर्षा के श्याम मेघांचल की लहराती हुई छाया के नीचे, इसकी उन्मादिनी लहरों में उसने पतवार फेंक कर अपनी जीवन-नइया खोल दी थी।

उस एकाकिनी की वह जर्जर तरी किस अज्ञात तट पर जा लगी, वह कौन बता सकता है!

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