Social Sciences, asked by abhishek790345, 6 months ago

2. विदेशी तीर्थयात्रियों के विवरणों से भारत के इतिहास के बारे में हमें क्या जानकारी मिलती है?

Answers

Answered by shubhamarya0741
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Explanation:

मैगस्थनीज

मौर्यकालीन इतिहास (Mauryan History) जानने का सबसे महत्त्वपूर्ण स्रोत मैगस्थनीज (Megasthenes) द्वारा लिखी गई पुस्तक इंडिका है. मैगस्थनीज यूनानी था, जिसे यूनानी शासक सेल्यूकस ने अपना दूत बनाकर चन्द्रगुप्त मौर्य के दरबार में भेजा था. वह 302 ई.पू. से 298 ई.पू. तक मौर्य साम्राज्य की राजधानी पाटलिपुत्र में रहा. दुर्भाग्यवश उसका मूल ग्रन्थ नष्ट हो गया है, किन्तु बाद के यूनानी यात्रियों – स्ट्रेबो, प्लिनी, एरियन आदि के द्वारा दिए गए उद्धरणों से मैगस्थनीज के विवरण के सम्बन्ध में जानकारी मिलती है. शानबैक ने उसके द्वारा दिए गए विवरण का संग्रह कर अंग्रेजी अनुवाद किया है.

डायमेकस

इसे सीरिया के शासक एंटिओकस प्रथम (Antiochus I) के द्वारा बिंदुसार के दरबार में दूत बनाकर भेजा गया था. स्ट्रेबो के लेखों में हमें डायमेकस के द्वारा दिए गए विवरण प्राप्त होते हैं. उसके विवरण के अनुसार बिंदुसार ने सीरियन नरेश से अंजीर, मीठी शराब और यूनानी दार्शनिक मौर्य दरबार में भेजने को कहा था. सीरियन नरेश ने मीठी शराब और अंजीर तो भेज दी, पर यूनानी दार्शनिक भेजने में असमर्थता व्यक्त की.

डायोनिसियस (Dionysius)

यह मिस्र के राजा टॉलमी फिलाडेल्फस का राजदूत था, जो मौर्य सम्राट् बिंदुसार के दरबार में आया था. डायमेकस की ही भाँति स्ट्रैबो आदि परवर्ती यूनानी लेखकों के विवरणों में इसके तत्कालीन सामाजिक और आर्थिक दशाओं पर उद्धरण मिलते हैं.

फाह्यान

Fahien नामक चीनी बौद्ध यात्री चन्द्रगुप्त द्वितीय के समय में भारत आया था. इसका मुख्य उद्देश्य बौद्ध ग्रन्थों का अध्ययन और अनुशीलन करना था. धार्मिक प्रवृत्ति का होने के कारण इसने भारत की धार्मिक अवस्था विशेषकर बौद्ध धर्म की स्थिति पर विशेष प्रकाश डाला है. यहाँ तक कि अपने वृत्तान्त में वह भारतीय सम्राट् के नाम का उल्लेख तक नहीं करता. उस समय की सामाजिक व्यवस्था का इसके द्वारा विशेष वर्णन मिलता है.

ह्वेनसांग

यह बौद्ध चीनी यात्री (Chinese traveller) सम्राट हर्षवर्द्धन के शासनकाल में भारत आया था. यह चौदह (629-43 ई.) वर्ष भारत में रहा. उसने लगभग सम्पूर्ण भारत का परिभ्रमण किया. वह कुछ वर्ष सम्राट हर्षवर्धन के दरबार (कन्नौज) में रहा. उसने अपने अनुभवों को “सी-यू-की” नामक पुस्तक में लेखबद्ध किया. ह्वेनसांग (Hwen Ts’ang) का विवरण ऐतिहासिक दृष्टिकोण से कहीं अधिक तथ्यात्मक है.  ह्वेनसांग के अनुसार – सम्राट शीलादित्य (हर्ष) अपने राज्य की 3/4 आय धार्मिक कार्यों पर व्यय करता था, सती प्रथा का चलन था, दंड विधान कठोर था, लोग ईमानदार थे और मांस, प्याज व मद्यपान का सेवन नहीं करते थे, जाति प्रथा कठोर थी. ह्वेनसांग को तीर्थयात्रियों का राजकुमार (prince of pilgrims) कहा जाता है.

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