2. वर्तमान में भारत की स्थिति 700 words parichay 200 words, 300 words vishya vastu, vishya ki bhumika 200 words
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"The most-popular forms are bhaji, vada pav, misalpav and pav bhaji. More-traditional dishes are sabudana khichadi, pohe, upma, sheera and panipuri. Most Marathi fast food and snacks are lacto-vegetarian."
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सोने की चिड़ियाँ आज़ाद तो हो गयी,
लेकिन वीरों की कहानी धीरे-धीरे सो गई,
लेकिन वीरों की कहानी धीरे-धीरे सो गई,भ्रष्टाचार, बलात्कार और क़त्ले ये तो रोज होने लगी है,
लेकिन वीरों की कहानी धीरे-धीरे सो गई,भ्रष्टाचार, बलात्कार और क़त्ले ये तो रोज होने लगी है,अब तो भारत माँ की आँखे भी रोने लगी है
लेकिन वीरों की कहानी धीरे-धीरे सो गई,भ्रष्टाचार, बलात्कार और क़त्ले ये तो रोज होने लगी है,अब तो भारत माँ की आँखे भी रोने लगी हैखेतों की हरियाली कोठियों में बदल गई,
लेकिन वीरों की कहानी धीरे-धीरे सो गई,भ्रष्टाचार, बलात्कार और क़त्ले ये तो रोज होने लगी है,अब तो भारत माँ की आँखे भी रोने लगी हैखेतों की हरियाली कोठियों में बदल गई,किसानों की खुशियां धूं-धूं कर जल गई,
लेकिन वीरों की कहानी धीरे-धीरे सो गई,भ्रष्टाचार, बलात्कार और क़त्ले ये तो रोज होने लगी है,अब तो भारत माँ की आँखे भी रोने लगी हैखेतों की हरियाली कोठियों में बदल गई,किसानों की खुशियां धूं-धूं कर जल गई,कठोर परिश्रम करके भी वो कुछ नही पाता है,
लेकिन वीरों की कहानी धीरे-धीरे सो गई,भ्रष्टाचार, बलात्कार और क़त्ले ये तो रोज होने लगी है,अब तो भारत माँ की आँखे भी रोने लगी हैखेतों की हरियाली कोठियों में बदल गई,किसानों की खुशियां धूं-धूं कर जल गई,कठोर परिश्रम करके भी वो कुछ नही पाता है,किसान उगाता है तभी तो देश खाता है
लेकिन वीरों की कहानी धीरे-धीरे सो गई,भ्रष्टाचार, बलात्कार और क़त्ले ये तो रोज होने लगी है,अब तो भारत माँ की आँखे भी रोने लगी हैखेतों की हरियाली कोठियों में बदल गई,किसानों की खुशियां धूं-धूं कर जल गई,कठोर परिश्रम करके भी वो कुछ नही पाता है,किसान उगाता है तभी तो देश खाता हैआखिर क्यों बेटियाँ कोख में है मरती,
लेकिन वीरों की कहानी धीरे-धीरे सो गई,भ्रष्टाचार, बलात्कार और क़त्ले ये तो रोज होने लगी है,अब तो भारत माँ की आँखे भी रोने लगी हैखेतों की हरियाली कोठियों में बदल गई,किसानों की खुशियां धूं-धूं कर जल गई,कठोर परिश्रम करके भी वो कुछ नही पाता है,किसान उगाता है तभी तो देश खाता हैआखिर क्यों बेटियाँ कोख में है मरती,ये वो फूल है जो हर बाग में नही खिलती,
लेकिन वीरों की कहानी धीरे-धीरे सो गई,भ्रष्टाचार, बलात्कार और क़त्ले ये तो रोज होने लगी है,अब तो भारत माँ की आँखे भी रोने लगी हैखेतों की हरियाली कोठियों में बदल गई,किसानों की खुशियां धूं-धूं कर जल गई,कठोर परिश्रम करके भी वो कुछ नही पाता है,किसान उगाता है तभी तो देश खाता हैआखिर क्यों बेटियाँ कोख में है मरती,ये वो फूल है जो हर बाग में नही खिलती,लक्ष्मीबाई, टेरेसा और कल्पना जैसी शख़्सियत खोजते हो,
लेकिन वीरों की कहानी धीरे-धीरे सो गई,भ्रष्टाचार, बलात्कार और क़त्ले ये तो रोज होने लगी है,अब तो भारत माँ की आँखे भी रोने लगी हैखेतों की हरियाली कोठियों में बदल गई,किसानों की खुशियां धूं-धूं कर जल गई,कठोर परिश्रम करके भी वो कुछ नही पाता है,किसान उगाता है तभी तो देश खाता हैआखिर क्यों बेटियाँ कोख में है मरती,ये वो फूल है जो हर बाग में नही खिलती,लक्ष्मीबाई, टेरेसा और कल्पना जैसी शख़्सियत खोजते हो,समय आने पर उसे ही इस दुनिया में आने से रोकते हो
लेकिन वीरों की कहानी धीरे-धीरे सो गई,भ्रष्टाचार, बलात्कार और क़त्ले ये तो रोज होने लगी है,अब तो भारत माँ की आँखे भी रोने लगी हैखेतों की हरियाली कोठियों में बदल गई,किसानों की खुशियां धूं-धूं कर जल गई,कठोर परिश्रम करके भी वो कुछ नही पाता है,किसान उगाता है तभी तो देश खाता हैआखिर क्यों बेटियाँ कोख में है मरती,ये वो फूल है जो हर बाग में नही खिलती,लक्ष्मीबाई, टेरेसा और कल्पना जैसी शख़्सियत खोजते हो,समय आने पर उसे ही इस दुनिया में आने से रोकते होअब तो शिक्षा भी राजनीति से जुड़ गई,
लेकिन वीरों की कहानी धीरे-धीरे सो गई,भ्रष्टाचार, बलात्कार और क़त्ले ये तो रोज होने लगी है,अब तो भारत माँ की आँखे भी रोने लगी हैखेतों की हरियाली कोठियों में बदल गई,किसानों की खुशियां धूं-धूं कर जल गई,कठोर परिश्रम करके भी वो कुछ नही पाता है,किसान उगाता है तभी तो देश खाता हैआखिर क्यों बेटियाँ कोख में है मरती,ये वो फूल है जो हर बाग में नही खिलती,लक्ष्मीबाई, टेरेसा और कल्पना जैसी शख़्सियत खोजते हो,समय आने पर उसे ही इस दुनिया में आने से रोकते होअब तो शिक्षा भी राजनीति से जुड़ गई,डालरूपी भविष्य की चिड़ियाँ बसने से पहले ही उड़ गई,
लेकिन वीरों की कहानी धीरे-धीरे सो गई,भ्रष्टाचार, बलात्कार और क़त्ले ये तो रोज होने लगी है,अब तो भारत माँ की आँखे भी रोने लगी हैखेतों की हरियाली कोठियों में बदल गई,किसानों की खुशियां धूं-धूं कर जल गई,कठोर परिश्रम करके भी वो कुछ नही पाता है,किसान उगाता है तभी तो देश खाता हैआखिर क्यों बेटियाँ कोख में है मरती,ये वो फूल है जो हर बाग में नही खिलती,लक्ष्मीबाई, टेरेसा और कल्पना जैसी शख़्सियत खोजते हो,समय आने पर उसे ही इस दुनिया में आने से रोकते होअब तो शिक्षा भी राजनीति से जुड़ गई,डालरूपी भविष्य की चिड़ियाँ बसने से पहले ही उड़ गई,ज्ञान के उपवन में अब तो सत्ता के फूल लगाए गए है,
लेकिन वीरों की कहानी धीरे-धीरे सो गई,भ्रष्टाचार, बलात्कार और क़त्ले ये तो रोज होने लगी है,अब तो भारत माँ की आँखे भी रोने लगी हैखेतों की हरियाली कोठियों में बदल गई,किसानों की खुशियां धूं-धूं कर जल गई,कठोर परिश्रम करके भी वो कुछ नही पाता है,किसान उगाता है तभी तो देश खाता हैआखिर क्यों बेटियाँ कोख में है मरती,ये वो फूल है जो हर बाग में नही खिलती,लक्ष्मीबाई, टेरेसा और कल्पना जैसी शख़्सियत खोजते हो,समय आने पर उसे ही इस दुनिया में आने से रोकते होअब तो शिक्षा भी राजनीति से जुड़ गई,डालरूपी भविष्य की चिड़ियाँ बसने से पहले ही उड़ गई,ज्ञान के उपवन में अब तो सत्ता के फूल लगाए गए है,ये वही आँगन है जहाँ कलाम और अंबेडकर उगाये गए है