(2) यह हरिणशावक पार्वत्य-भूमि की संपत्ति है, राजपुरुष और इसी पार्वत्य-भूमि के निवासी हम इसके सजातीय हैं
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इस प्रदेश में हरिणों का आखेट नहीं होता राजपुरुष ! ... कालिदास : यह हरिणशावक इस पार्वत्य-भूमि की संपत्ति है, राजपुरुष ! और इसी पार्वत्य-भूमि के निवासी हम इसके सजातीय हैं। तुम यह सोच कर भूल कर रहे हो कि हम इसे तुम्हारे हाथ में सौंप देंगे।..
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