(20 अक)
कृति । अ) गद्यांश पढ़कर सूचना के अनुसार कृतियाँ पूर्ण कीजिए:
(06)
"प्रभात का समय था, आसमान से बरसती हुई प्रकाश की किरणें संसार पर नवीन जीवन की वर्षा कर रही
थी। बारह घंटो के लगातार संग्राम के बाद प्रकाश ने अधेरै पर विजय पाई थी। इस खुशी में फूल झूम रहे थे
पक्षी मीले गीत गा रहे थे, पेड़ों की शाखाएँ खेलती थी और पत्ते तालियाँ बजाते थे। चारों तरफ खुशियाँ झूमती
थी। चारों तरफ गीत गूंजते थे। इतने में साधुओं की एक मडली शहर के अंदर दाखिल हुई। उनका खयाल
घा-मन बड़ा चंचल है। अगर इसे काम न हो, तो इधर-उधर भटकने लगता है और अपने स्वामी को विनाश
की खाई में गिराकरन कर डालता है। इसे भक्ति की जंजीरों से जकड़ देना चाहिए। साधु गाते थे-
सुमर-सुमर भगवान को,
मूरख मत खाली छोड़ इस मन को।
जब संसार कोत्याग चुके थे, उन्हें सुर-ताल की क्या परवाह थी। कोई उनके स्वर में गाता था, कोई मुँह
में गुनगुनाता था। और लोग क्या कहते है, इन्हें इसकी जरा भी चिंता न थी। ये अपने राग में मगन थे कि
सिपाहियों ने आकर घेर लिया और हथकड़ियाँ लगाकर अकबर बादशाह के दरबार को ले चले।
यह वह समय था जब भारत में अकबर की तूती बोलती थी और उसके मशहूर रागी तानसेन ने यह
कानून बनवा दिया था कि जो आदमी रागविद्या में उसकी बराबरी न कर सके, वह आगरे की सीमा में गीत
न गाए और जोगाए, उसे मौत की सजा दी जाए। बेचारे बनवासी साधुओं को पता नहीं था परंतु अज्ञान भी
अपराध है। मुकदमा दरबार में पेश हुआ। तानसेन ने रागविद्या के कुछ प्रश्न किए। साधु उत्तर में मुँह ताकने
लगे। अकबर के होठ हिले और सभी साधु तानसेन की दया पर छोड़ दिए गए।"
(पट कमांक 16)
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आसन जमाए गीत गाए चले जा रहे हैं। वही पुराना स्वर, वही पुरानी
तल्लीनता। घर में पतोहू रो रही है जिसे गाँव की स्त्रियाँ चुप कराने की कोशिश कर रही है। किंतु बालगोबिन
भगत गाए जा रहे हैं। हाँ, गाते-गाते कभी-कभी पतोहू के नजदीक भी जाते और उसे रोने के बदले उत्सव मनाने
को कहते। आत्मा परमात्मा के पास चली गई, विरहिनी अपने प्रेमी से जा मिली, भला इससे बढ़कर आनद की
कौन बात? मैं कभी-कभी सोचता, यह पागल तो नहीं हो गए। किंतु नहीं, वह जो कुछ कह रहे थे उ
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सुमर-सुमर भगवान को,
मूरख मत खाली छोड़ इस मन को।
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