20. कातिक सरद-चन्द उजियारी। जग सीतल, हौं विरहै जारी.
चौदह करा चाँद परगासा। जनहु जरै सब धरति अकासा
तन मन सेज करै अग्रिदाहू। सब कहँ चंद, भएउ मोहि राहू
चहुँ खण्ड लागै अंधियारा। जौं घर नहीं कंत पियारा_
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20. कातिक सरद-चन्द उजियारी। जग सीतल, हौं विरहै जारी.
चौदह करा चाँद परगासा। जनहु जरै सब धरति अकासा
तन मन सेज करै अग्रिदाहू। सब कहँ चंद, भएउ मोहि राहू
चहुँ खण्ड लागै अंधियारा। जौं घर नहीं कंत पियारा_
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20. कातिक सरद-चन्द उजियारी। जग सीतल, हौं विरहै जारी.
चौदह करा चाँद परगासा। जनहु जरै सब धरति अकासा
तन मन सेज करै अग्रिदाहू। सब कहँ चंद, भएउ मोहि राहू
चहुँ खण्ड लागै अंधियारा। जौं घर नहीं कंत पियारा_
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