Hindi, asked by PulkitMehta, 1 year ago

20 lines on kite in hindi

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Answered by dhananjay2345
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भारत में पतंग उड़ाने की कला प्राचीन समय से ही चली आ रही है। पतंग हवा में उड़ने वाली वस्तु है जो धागे के सहारे हवा में उड़ती है। भारत के हर कोने -कोने में बच्चों से जवानों तक पतंगबाजी का शौंक रखते हैं। प्राचीन समय में पतंगबाजी करने की कला ही बड़ी निराली हुआ करती थी उस समय के राजे -महाराजे , शहजादे इस खेल को बड़ी ही रूचि के साथ खेला करते थे। उस समय तो पतंगों के पेंच लड़ाने की प्रतियोगिताएं करवाई जाती थी।





भारत में तो आज भी पतंग (Kite) उड़ाने का समय एक मौसम की तरह आता है बसंत ऋतू में ज्यादातर पतंग उड़ाए जाते हैं इस दिन तो इतनी पतंगे उड़ती हैं के सारा आसमान रंग -बिरंगी पतंगों से भर जाता है । इसके इलावा उतर भारत में लोग स्वतंत्रता दिवस के दिनों में पतंग उड़ाते हैं। ज्यादातर बच्चे पतंगबाजी का शौंक रखते हैं। माना जाता है के पतंगबाजी के खेल की शुरुयात चीन में हुई थी और दुनिया की पहली पतंग एक चीनी के द्वारा बनाई गयी थी। भारत में तो पतंगबाजी इतनी लोकप्रिय हुई है के कई कवियों ने तो हवा में उड़ने वाली इस साधारण सी वस्तु पर कविताएं ही लिख डाली।

पतंग (Kite) तो उचाईयोँ को पा लेने की इच्छा का प्रतीक माना जाता है संक्रांति के अवसर पर इसे उड़ाया जाना इसी बात की पुष्टि करता है। पतंग उड़ाने में तो बच्चे से लेकर बुजुर्ग तक सहज ही दौड़ पड़ते हैं। पतंग का उड़ना हमें जीवन का संदेश दे सकता है बहुत ही छोटी सी यह पतंग हमें बड़ी कीमती सीख दे जाती है। पतंग आसमान में काफी उपर उड़ता है जिसकी एक डोर होती है जो उसे सम्भालती है आप मानोगे के पतंग तो डोर से बांधा हुआ है भला यह कैसी आज़ादी ?

यदि इसी पतंग (Kite) की डोर को काट दिया जाए तो पतंग कुछ ही देर में जमीन पर होगा भला हम किस डोर को पतंग का बंधन समझ रहे थे वह बंधन ही था जो पतंग को आसमान में उड़ा रहा था इसके इलावा डोर का नियंत्रण ही पतंग को भटकने से बचाता है।



यदि पतंग की डोर कच्ची हो तो वो जल्दी जमीन पर आ गिरती है वो हमारे नियंत्रण से दूर चली जाती है इसी प्रकार मनुष्य जीवन की डोर भी भरोसे और उम्मीद की डोर के सहारे चलती है और अगर भरोसा टूटा तो जीवन की पतंग भी देखते ही देखते जमीन पर आ गिरती है और नीचे गिरी पतंग की तरफ़ कोई नहीं देखता बल्कि उड़तीं हुई पतंगे ही सबको अच्छी लगती है।
Answered by Deepmala15April2005
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भारत में पतंग उड़ाने की कला प्राचीन समय से ही चली आ रही है।
पतंग हवा में उड़ने वाली वस्तु है जो धागे के सहारे हवा में उड़ती है।
भारत के हर कोने -कोने में बच्चों से जवानों तक पतंगबाजी का शौंक रखते हैं।
प्राचीन समय में पतंगबाजी करने की कला ही बड़ी निराली हुआ करती थी उस समय के राजे -महाराजे , शहजादे इस खेल को बड़ी ही रूचि के साथ खेला करते थे।
उस समय तो पतंगों के पेंच लड़ाने की प्रतियोगिताएं करवाई जाती थी।
भारत में तो आज भी पतंग (Kite) उड़ाने का समय एक मौसम की तरह आता है बसंत ऋतू में ज्यादातर पतंग उड़ाए जाते हैं इस दिन तो इतनी पतंगे उड़ती हैं के सारा आसमान रंग -बिरंगी पतंगों से भर जाता है ।
इसके इलावा उतर भारत में लोग स्वतंत्रता दिवस के दिनों में पतंग उड़ाते हैं।
ज्यादातर बच्चे पतंगबाजी का शौंक रखते हैं।
माना जाता है के पतंगबाजी के खेल की शुरुयात चीन में हुई थी और दुनिया की पहली पतंग एक चीनी के द्वारा बनाई गयी थी।
भारत में तो पतंगबाजी इतनी लोकप्रिय हुई है के कई कवियों ने तो हवा में उड़ने वाली इस साधारण सी वस्तु पर कविताएं ही लिख डाली।
पतंग (Kite) तो उचाईयोँ को पा लेने की इच्छा का प्रतीक माना जाता है संक्रांति के अवसर पर इसे उड़ाया जाना इसी बात की पुष्टि करता है।
पतंग उड़ाने में तो बच्चे से लेकर बुजुर्ग तक सहज ही दौड़ पड़ते हैं।
पतंग का उड़ना हमें जीवन का संदेश दे सकता है बहुत ही छोटी सी यह पतंग हमें बड़ी कीमती सीख दे जाती है।
पतंग आसमान में काफी उपर उड़ता है जिसकी एक डोर होती है जो उसे सम्भालती है आप मानोगे के पतंग तो डोर से बांधा हुआ है भला यह कैसी आज़ादी ?
यदि इसी पतंग (Kite) की डोर को काट दिया जाए तो पतंग कुछ ही देर में जमीन पर होगा भला हम किस डोर को पतंग का बंधन समझ रहे थे वह बंधन ही था जो पतंग को आसमान में उड़ा रहा था इसके इलावा डोर का नियंत्रण ही पतंग को भटकने से बचाता है।
यदि पतंग की डोर कच्ची हो तो वो जल्दी जमीन पर आ गिरती है वो हमारे नियंत्रण से दूर चली जाती है इसी प्रकार मनुष्य जीवन की डोर भी भरोसे और उम्मीद की डोर के सहारे चलती है और अगर भरोसा टूटा तो जीवन की पतंग भी देखते ही देखते जमीन पर आ गिरती है और नीचे गिरी पतंग की तरफ़ कोई नहीं देखता बल्कि उड़तीं हुई पतंगे ही सबको अच्छी लगती है।
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