20 sentences on jhansi ki rani in hindi in hindi की duniya
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लक्ष्मीबाई उर्फ़ झाँसी की रानी मराठा शासित राज्य झाँसी की रानी थी।। जो उत्तर-मध्य भारत में स्थित है।
रानी लक्ष्मीबाई 1857 के प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की वीरांगना थी जिन्होंने अल्पायु में ही ब्रिटिश साम्राज्य से संग्राम किया था।
वीरांगना रानी लक्ष्मी बाई जिन्होनें अपने साहसी कामों से ने सिर्फ इतिहास रच दिया बल्कि तमाम महिलाओं के मन में एक साहसी ऊर्जा का संचार किया है रानी लक्ष्मी बाई जिन्होनें अपने साहस के बल पर कई राजाओं को हार की धूल चटाई।
लक्ष्मीबाई बचपन से पुरूषों के योग्य खेलों में अधिक रूचि लेती थी।
आपने घुड़सवारी तीर–कमान चलाना तलवार चलाना आदि कौशल बचपन से ही सीख लिए थे।
नाना साहब के पुरूषों जैसे वस्त्र पहनकर व्यूह-रचना करने में छबीली ने अधिक रूचि ली।
अस्त्र-शस्त्र विद्या में वह शीघ्र ही निपुण हो गई।
कुछ बड़ी होने पर मनुबाई का पाणिग्रहण संस्कार झाँसी के राजा गंगाधर राव से हुआ।
मनुबाई झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई बन गई।
कुछ समय पश्चात् पुत्र की प्राप्ति भी हुई पर पुत्र तीन माह के भीतर ही मृत्यू को प्राप्त हो गया।
अधिक उम्र तक पुत्र न होने तथा पुत्र-मृत्यु के दुःख से राजा गंगाधर राव की भी मृत्यू हो गई काफी समय तक महारानी भी वियोग में डूबी रही और विविश होकर रानी ने दामोदर राव को गोद ले लिया।
लॉर्ड डलहौजी ने महारानी के दत्तक पुत्र को मान्यता नहीं दी और झाँसी को सैन्य शक्ति के बल पर अँगरेजी राज्य में मिलाने का आदेश दे दिया।
महारानी को यह सहन नहीं हुआ और उन्होंने झाँसी को अँगरेजो को देने से मना कर दिया।
उन्होंने साफ-साफ कहा- ‘झाँसी हमारी है में अपनी झाँसी अँगरेजों को नहीं /
महारानी लक्ष्मीबाई वीरांगना होने के साथ एक कुशल राजनीतिज्ञ भी थी।
महारानी का ह्रदय आँगरेजों के प्रति घृणा से भर गया था और वह उलसे बदला लेने के लिए ठीक समय और अवसर की तलाश में थी।
भारत की सभी रियासतों के राजाओं और नवाबों को जिनकी रियासतों को अँगरेजों ने अपने राज्य में मिला लिया था एकजुटकर रानी अँगरेजों से भिड़ने के लिए तैयार हो गई/
Hope it will help you.
रानी लक्ष्मीबाई 1857 के प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की वीरांगना थी जिन्होंने अल्पायु में ही ब्रिटिश साम्राज्य से संग्राम किया था।
वीरांगना रानी लक्ष्मी बाई जिन्होनें अपने साहसी कामों से ने सिर्फ इतिहास रच दिया बल्कि तमाम महिलाओं के मन में एक साहसी ऊर्जा का संचार किया है रानी लक्ष्मी बाई जिन्होनें अपने साहस के बल पर कई राजाओं को हार की धूल चटाई।
लक्ष्मीबाई बचपन से पुरूषों के योग्य खेलों में अधिक रूचि लेती थी।
आपने घुड़सवारी तीर–कमान चलाना तलवार चलाना आदि कौशल बचपन से ही सीख लिए थे।
नाना साहब के पुरूषों जैसे वस्त्र पहनकर व्यूह-रचना करने में छबीली ने अधिक रूचि ली।
अस्त्र-शस्त्र विद्या में वह शीघ्र ही निपुण हो गई।
कुछ बड़ी होने पर मनुबाई का पाणिग्रहण संस्कार झाँसी के राजा गंगाधर राव से हुआ।
मनुबाई झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई बन गई।
कुछ समय पश्चात् पुत्र की प्राप्ति भी हुई पर पुत्र तीन माह के भीतर ही मृत्यू को प्राप्त हो गया।
अधिक उम्र तक पुत्र न होने तथा पुत्र-मृत्यु के दुःख से राजा गंगाधर राव की भी मृत्यू हो गई काफी समय तक महारानी भी वियोग में डूबी रही और विविश होकर रानी ने दामोदर राव को गोद ले लिया।
लॉर्ड डलहौजी ने महारानी के दत्तक पुत्र को मान्यता नहीं दी और झाँसी को सैन्य शक्ति के बल पर अँगरेजी राज्य में मिलाने का आदेश दे दिया।
महारानी को यह सहन नहीं हुआ और उन्होंने झाँसी को अँगरेजो को देने से मना कर दिया।
उन्होंने साफ-साफ कहा- ‘झाँसी हमारी है में अपनी झाँसी अँगरेजों को नहीं /
महारानी लक्ष्मीबाई वीरांगना होने के साथ एक कुशल राजनीतिज्ञ भी थी।
महारानी का ह्रदय आँगरेजों के प्रति घृणा से भर गया था और वह उलसे बदला लेने के लिए ठीक समय और अवसर की तलाश में थी।
भारत की सभी रियासतों के राजाओं और नवाबों को जिनकी रियासतों को अँगरेजों ने अपने राज्य में मिला लिया था एकजुटकर रानी अँगरेजों से भिड़ने के लिए तैयार हो गई/
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