2009 में ऑटोमोबाइल क्षेत्र मे सबसे ज्यादा गाडीया निर्यात करने वाला पहला देश कौन सा था?
Answers
Answer:
भारतमें वाहन उद्योग विश्व का सातवां सबसे बड़ा वाहन उद्योग है, जिसने वर्ष 2009 में 26 लाख इकाइयों का उत्पादन किया।[1] 2009 में, जापान, दक्षिण कोरिया और थाइलैंड के बाद भारत एशिया का चौथा सबसे बड़ा वाहन निर्यातक बन गया।[2] अनुमान है कि 2050 तक भारत की सड़कों पर 61.1 करोड़ वाहन होंगे जो विश्व में सर्वाधिक वाहन संख्या होगी। [3]
1991 भारत में शुरू हुए आर्थिक उदारीकरण के बाद, बढ़ती प्रतियोगिता और सरकार द्वारा नियमों को सरल बनाने के कारण भारतीय वाहन उद्योग ने लगातार वृद्धि की है। टाटा मोटर्स, मारुति सुज़ुकी एवं महिन्द्रा एंड महिन्द्रा जैसे भारतीय वाहन निर्माताओं ने अपने घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय व्यवसाय को बढ़ाया है। भारत की मजबूत आर्थिक वृद्धि के कारण भारत के घरेलू वाहन बाजार का विस्तार हुआ है और बहु-राष्ट्रीय वाहन निर्माता भारत-केन्द्रित निवेश के लिए आकर्षित हुए हैं।[4] फरवरी 2009 में भारत ने यात्री कारों की मासिक बिक्री 1 लाख कारों से अधिक रही। [5]
भारत में वाहन उद्योग की शुरुआत 1940 के दशक में हुई। 1947 में आजादी के बाद, वाहन उद्योग को आपूर्ति करने के लिए, भारत सरकार और निजी क्षेत्र द्वारा वाहन के कल-पुर्जों के निर्माण हेतु उद्योग लगाने के प्रयास किए गए। हालांकि राष्ट्रीयकरण और निजी क्षेत्र के विकास में बाधा डालने वाले लाइसेंस राज के कारण तुलनात्मक रूप से 1950 और 1960 के दशक में इस उद्योग की वृद्धि दर धीमी रही। 1970 के बाद, वाहन उद्योग ने विकास करना आरंभ किया लेकिन यह विकास मुख्य रूप से ट्रैक्टरों, व्यावसायिक वाहनों और स्कूटरों के निर्माण में लक्षित हुआ। कारें अब भी बड़ी विलासिता की वस्तु बनी रही। जापानी वाहन निर्माताओं ने भारतीय बाजार में प्रवेश के प्रयास किए और आखिरकार मारुति उद्योग की स्थापना हुई। अनेक विदेशी फर्मों ने भारतीय कम्पनियों के साथ संयुक्त उद्यमों की स्थापना की। [6]
1980 के दशक में, कई जापानी निर्माताओं ने मोटरसाइकिलों एवं हल्के व्यावसायिक वाहनों के उत्पादन हेतु संयुक्त उद्यमों की स्थापना की। इसी समय भारत सरकार ने सुज़ुकी को छोटी कारों के निर्माण हेतु संयुक्त उद्यम स्थापित करने हेतु चुना। 1991 में शुरू हुए आर्थिक उदारीकरण के बाद और साथ ही लाइसेंस राज के धीरे-धीरे कमजोर होने पर कई भारतीय एवं बहु-राष्ट्रीय कार कम्पनियां भारतीय बाजार में उतरीं. तब से, घरेलू एवं निर्यात मांगों की पूर्ति हेतु वाहनों के पुर्जे बनाने वाले उद्योग और वाहन निर्माण उद्योग की वृद्धि लगातार होती रही है।
Explanation:
भारतमें वाहन उद्योग विश्व का सातवां सबसे बड़ा वाहन उद्योग है, जिसने वर्ष 2009 में 26 लाख इकाइयों का उत्पादन किया।[1] 2009 में, जापान, दक्षिण कोरिया और थाइलैंड के बाद भारत एशिया का चौथा सबसे बड़ा वाहन निर्यातक बन गया।[2] अनुमान है कि 2050 तक भारत की सड़कों पर 61.1 करोड़ वाहन होंगे जो विश्व में सर्वाधिक वाहन संख्या होगी। [3]
1991 भारत में शुरू हुए आर्थिक उदारीकरण के बाद, बढ़ती प्रतियोगिता और सरकार द्वारा नियमों को सरल बनाने के कारण भारतीय वाहन उद्योग ने लगातार वृद्धि की है। टाटा मोटर्स, मारुति सुज़ुकी एवं महिन्द्रा एंड महिन्द्रा जैसे भारतीय वाहन निर्माताओं ने अपने घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय व्यवसाय को बढ़ाया है। भारत की मजबूत आर्थिक वृद्धि के कारण भारत के घरेलू वाहन बाजार का विस्तार हुआ है और बहु-राष्ट्रीय वाहन निर्माता भारत-केन्द्रित निवेश के लिए आकर्षित हुए हैं।[4] फरवरी 2009 में भारत ने यात्री कारों की मासिक बिक्री 1 लाख कारों से अधिक रही। [5]
भारत में वाहन उद्योग की शुरुआत 1940 के दशक में हुई। 1947 में आजादी के बाद, वाहन उद्योग को आपूर्ति करने के लिए, भारत सरकार और निजी क्षेत्र द्वारा वाहन के कल-पुर्जों के निर्माण हेतु उद्योग लगाने के प्रयास किए गए। हालांकि राष्ट्रीयकरण और निजी क्षेत्र के विकास में बाधा डालने वाले लाइसेंस राज के कारण तुलनात्मक रूप से 1950 और 1960 के दशक में इस उद्योग की वृद्धि दर धीमी रही। 1970 के बाद, वाहन उद्योग ने विकास करना आरंभ किया लेकिन यह विकास मुख्य रूप से ट्रैक्टरों, व्यावसायिक वाहनों और स्कूटरों के निर्माण में लक्षित हुआ। कारें अब भी बड़ी विलासिता की वस्तु बनी रही। जापानी वाहन निर्माताओं ने भारतीय बाजार में प्रवेश के प्रयास किए और आखिरकार मारुति उद्योग की स्थापना हुई। अनेक विदेशी फर्मों ने भारतीय कम्पनियों के साथ संयुक्त उद्यमों की स्थापना की। [6]
1980 के दशक में, कई जापानी निर्माताओं ने मोटरसाइकिलों एवं हल्के व्यावसायिक वाहनों के उत्पादन हेतु संयुक्त उद्यमों की स्थापना की। इसी समय भारत सरकार ने सुज़ुकी को छोटी कारों के निर्माण हेतु संयुक्त उद्यम स्थापित करने हेतु चुना। 1991 में शुरू हुए आर्थिक उदारीकरण के बाद और साथ ही लाइसेंस राज के धीरे-धीरे कमजोर होने पर कई भारतीय एवं बहु-राष्ट्रीय कार कम्पनियां भारतीय बाजार में उतरीं. तब से, घरेलू एवं निर्यात मांगों की पूर्ति हेतु वाहनों के पुर्जे बनाने वाले उद्योग और वाहन निर्माण उद्योग की वृद्धि लगातार होती रही है।