21 4 ग निम्नलिखित गद्यांश की सन्दर्भ-प्रसंग सहित व्याख्यात लिखिये मैं प्रायः सोचती हूं कि जब ऐसा बुलावा आ पहुंचेगा जिसमें न धोती साफ करने का अवकाश रहेगा, न सामान बांधने का, न भक्तिन को रूकने का अधिकार होगा, न मुझे रोकने का, तब चिर-निद्रा के अंतिम क्षणों में यह देहातिन वृद्ध क्या करेगी और मैं क्या करूंगी? घ TOTTT
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प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक आरोह के स्मरण आत्मक रेखाचित्र भक्तिन से अवतरित है इसकी लेखिका महादेवी वर्मा है
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दिए गए गद्यांश की संदर्भ की सप्रसंग व्याख्या निम्न प्रकार से दी गई है।
संदर्भ : यह प्रसंग पाठ से लिया गया है , इसकी लेखिका महादेवी वर्मा है।
प्रसंग
भक्तिन लेखिका की सेविका है, महादेवी वर्मा अपने अंतिम समय के बारे में सोचती है कि उस वक्त उसे एक क्षण भी न मिलेगा न ही भक्तिन को उसकी कोई सेवा का मौका मिलेगा।
व्याख्या :
- लेखिका सोचती है कि भक्तिन उसकी इतनी सेवा टहल करती है परन्तु जब उसका अंतिम समय आएगा तब उसे न तो धोती साफ करने का वक्त मिलेगा न समान बांधने का।
- उस वक्त न भक्तिन के यहां रुकने का कोई कारण होगा न ही लेखिका को उस रोकने का अधिकार होगा।
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