Hindi, asked by vivekrajverma006, 2 days ago

- 21. निम्नलिखित गद्यांश की सन्दर्भ प्रसंग सहित व्याख्या लिखिए ?
मूर्ति संगमरमर की थी। टोपी की नोक से कोट के दूसरे बटन तक कोई दो फुट ऊँची। जिसे कहते हैं बस्ट। और सुंदर थी। नेताजी सुंदर लग रहे थे। कुछ-कुछ मासूम और कमसिन। फौजी वर्दी में। मूर्ति को देखते ही दिल्ली चलो' और 'तुम मुझे खून दो वगैरह याद आने लगते थे। इस दृष्टि से यह सफल और सराहनीय प्रयास था। ​

Answers

Answered by ranjanaverma81093889
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संडर्भ _ यह गद्यांश हमारी पाठ्य_ पुस्तक के ' नेताजी का चमा ' पाठ से लिया गया है। इसके लेखक स्वयं प्रकाश है।

प्रसंग_ यहां पर कस्बे के मुख्य चौराहे पर लगाई गई नेताजी सुभाषचन्द्र बीस की प्रतिमा के बारे में बताया गया है।

व्याख्या_ सुभाषचन्द्र बोस की मूर्ति चैराहे पर लगाई गई थी वह संगमरमर की थी ,उनके सिर पर जो टोपी थी उसकी ऊपर की नाेंक से लेकर पहने हुए कोट की दूसरे बटन तक की उचाई लगभग दो फुट थी ।इसको बस्ट खा जाता है।जो मूर्ति लगवाई गई थी वह बहुत अच्छी लग रही थीं।

Answered by Rameshjangid
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संदर्भ :- यह गद्यांश नेताजी का चश्मा नामक पाठ से लिया गया है l

प्रसंग : - यहां पर कस्बे के मुख्य चौराहे पर लगाई गई नेताजी सुभाष चंद्र जी की प्रतिमा के बारे में बताया गया है।

व्याख्या : - सुभाष चंद्र बोस की जो मूर्ति चौराहे पर लगाई गई थी वह संगमरमर की थी, उसके सिर पर जो टोपी थी उसकी ऊपर की नोंक से लेकर पहने हुए टोपी की दूसरी बटन तक की ऊंचाई लगभग 2 फुट थी। इसको बस्ट कहा जाता है। जो मूर्ति लगाई गई थी वह बहुत अच्छी लग रही थी। उनमें नेताजी सुभाष चंद्र बोस जी बहुत सुंदर लग रहे थे। मूर्ति में वह बड़े भोले -भाले तथा नाजुक प्रतीत हो रहे थे। उन्होंने फौज की वर्दी पहन रखी थी। मूर्ति को देखते ही लगता था कि वह कह रही हो दिल्ली चलो 'या ' तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा ।' इसी तरह नेताजी के नारे याद आ जाते थे । इस तरह इस मूर्ति को चौराहे पर लगवाने का कार्य बहुत प्रशंसा के योग्य था।

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