Hindi, asked by chitrashyamsunderps, 5 hours ago

21.
वसंतऋतु भुगतनी होती है। इस स्थान की पुष्टि कविता के
आधार पर कीजिया |​

Answers

Answered by ketaa
1

Answer:

Explanation:

क) ऋतुओं की ऋतु वसंत

फिर वसंत की आत्मा आई,

मिटे प्रतीक्षा के दुर्वह क्षण,

अभिवादन करता भू का मन !

दीप्त दिशाओं के वातायन,

प्रीति सांस-सा मलय समीरण,

चंचल नील, नवल भू यौवन,

फिर वसंत की आत्मा आई,

आम्र मौर में गूंथ स्वर्ण कण,

किंशुक को कर ज्वाल वसन तन !

देख चुका मन कितने पतझर,

ग्रीष्म शरद, हिम पावस सुंदर,

ऋतुओं की ऋतु यह कुसुमाकर,

फिर वसंत की आत्मा आई,

विरह मिलन के खुले प्रीति व्रण,

स्वप्नों से शोभा प्ररोह मन !

सब युग सब ऋतु थीं आयोजन,

तुम आओगी वे थीं साधन,

तुम्हें भूल कटते ही कब क्षण?

फिर वसंत की आत्मा आई,

देव, हुआ फिर नवल युगागम,

स्वर्ग धरा का सफल समागम !

कवि: सुमित्रानंदन पंत

(ख) कवित्त

डार द्रुम पलना बिछौना नव पल्लव के,

सुमन झिंगूला सोहै तन छबि भारी दै।

पवन झूलावै, केकी-कीर बतरावैं 'देव',

कोकिल हवावै-हुलसावै कर तारी दै।।

पूरित पराग सौं उतारो करै राई नोन,

कंजकली नायिका लतान सिर सारी दै।

मदन महीप जू को बालक बसंत ताहि,

प्रातहि जगावत गुलाब चटकारी दै।।

कवि: देव

इन दोनों कविताओं में वसंत का मनमोहक वर्णन किया है। ऐसा लगता है मानो वसंत का सौंदर्य आँखों के समक्ष दृष्टिगोचर हो रहा है। ये कविताएँ 'वसंत आया' कविता से सर्वथा भिन्न हैं। इन कविताओं में आधुनिक जीवन की झलक नहीं मिलती है। मानवीय संवेदना धूमिल नहीं है, ये कविताएँ वसंत के समय प्रकृति के सौंदर्य को चरम तक दिखाती है। परन्तु 'वसंत आया' कविता में इसकी झलक तक देखने को नहीं मिलती है।

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